लोगों की राय

उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

337 पाठक हैं

शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


मैंने कहा, “इस तरफ क्या आदमी जीते नहीं आनन्द?”

प्रत्युत्तर में आनन्द ने रंचमात्र इतस्तत: न करके फौरन ही कहा, “नहीं। मगर इस विषय में तर्क करके क्या होगा भाई साहब? आप सिर्फ मेरा हाथ जोड़कर अनुरोध उनसे कह दीजिएगा। कहिएगा, आनन्द संन्यासी की आँखों से देखे बिना इसकी सत्यता समझ में नहीं आ सकती।”

मैं मौन रहा। कारण, राजलक्ष्मी को उनका यह अनुरोध जताना मेरे लिए कितना कठिन है, इसे आनन्द क्या जाने!

गाड़ी चल देने पर आनन्द ने फिर कहा, “क्यों भाई साहब, मुझे तो आपने एक बार भी आने का निमन्त्रण नहीं दिया?”

मैंने मुँह से कहा, “तुम्हारे कामों का क्या ठीक है, तुम्हें निमन्त्रण देना क्या आसान काम है भाई?”

मगर मन ही मन आशंका थी कि इसी बीच में कहीं वे स्वयं ही किसी दिन पहुँच न जाँय। फिर तो इस तीक्ष्ण-बुद्धि संन्यासी की दृष्टि से कुछ भी छुपाने का उपाय न रहेगा। एक दिन ऐसा था जब इससे कुछ भी बनता-बिगड़ता न था, तब मन ही मन हँसता हुआ कहा करता, “आनन्द, इस जीवन का बहुत कुछ विसर्जन दे चुका हूँ, इस बात को अस्वीकार न करूँगा, परन्तु मेरे नुकसान के उस सहज हिसाब को ही तुम देख सके और तुम्हारे देखने के बाहर जो मेरे संचय का अंक एकबारगी संख्यातीत हो रहा है सो! मृत्यु-पार का वह पाथेय अगर मेरा जमा रहे, तो मैं इधर की किसी भी हानि की परवाह न करूँगा।” लेकिन आज कहने के लिए बात ही क्या थी? इसी से चुपचाप सिर नीचा किये बैठा रहा। पल-भर में मालूम हुआ कि ऐश्वर्य का वह अपरिमेय गौरव अगर सचमुच ही आज मिथ्या मरीचिका में विलुप्त हो गया, तो इस गल-ग्रह, भग्न-स्वास्थ्य, अवांछित गृहस्वामी के भाग्य में अतिथि-आह्नान करने की विडम्बना अब न घटे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book