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उपन्यास >> श्रीकान्त

श्रीकान्त

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :598
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9719
आईएसबीएन :9781613014479

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शरतचन्द्र का आत्मकथात्मक उपन्यास


मैंने हँसकर कहा, “नहीं, कल सुबह ही चला जाऊँगा।”

“कल ही?”

“हाँ कल ही।”

“परन्तु आपका शरीर तो अभी तक सबल हुआ नहीं। क्या आप समझते हैं कि बीमारी एकबारगी चली गयी?”

मैंने कहा, “सुबह तक तो मैं यही समझता था कि बीमारी गयी, परन्तु अब सोचता हूँ कि नहीं। आज दोपहर ही मेरा सिर दुख रहा है।”

“तो फिर क्यों इतने शीघ्र जाते हैं? यहाँ तो आपको किसी प्रकार का कष्ट है नहीं।” इतना कहकर वह लड़का चिन्तित मुख से मेरी ओर देखने लगा। मैंने भी कुछ देर चुप हो, उसके चेहरे की ओर देखते हुए, उसके मुँह पर उसके भीतर के यथार्थ भाव पढ़ने की कोशिश की। जितना भी मैंने उसे पढ़ा उससे उसकी ओर से सत्य-गोपन की कोई भी चेष्टा होती हुई मैं अनुभव नहीं कर सकता। इस पर लड़का लजा अवश्य गया और उस लज्जा को ढँकने की भी उसने कोशिश की। वह बोला, “आप यहाँ से मत जाइए।”

“क्यों न जाऊँ, बताओ?”

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