लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचन्द की कहानियाँ 9

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9770
आईएसबीएन :9781613015070

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

145 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग


देवकी फूट-फूटकर रो रही थी और जादोराय आँखों में आँसू भरे, हृदय में एक ऐंठन-सी अनुभव करता हुआ सोचता था, हाय! मेरे लाल, तू मुझसे अलग हुआ जाता है। ऐसा योग्य और होनहार लड़का हाथ से निकला जाता है और केवल इसलिए कि अब हमारा खून सफेद हो गया है।

000

7. खूनी

माया अपने तिमंजिले मकान की छत पर खड़ी सड़क की ओर उत्सुक और चिंतित नेत्रों से देख रही थी और सोच रही थी- वह अब तक आए क्यों नहीं? कहाँ देर लगाई? इसी गाड़ी से तो आने को लिखा था। गाड़ी तो कब की आ गई। स्टेशन से मुसाफिर चले आ रहे हैं। इस वक्त और कोई तो गाड़ी भी नहीं आती। फिर क्या आज न आवेंगे? नहीं, झूठे वादे करने की तो उनकी आदत नहीं है। शायद असबाब उतरवाने में देर हो गई हो, या यार-दोस्त स्टेशन ही पर बधाइयाँ देने पहुँच गए होंगे। उनसे फुर्सत मिलेगी, तब तो घर की सुध आएगी। उनकी जगह मैं होती तो सीधी घर आती। मित्रों से कह देती, आप लोग इस समय क्षमा करें, घर पर मिलिए, पर दोस्तों में उनकी तो जान बसती है।

मि. व्यास लखनऊ के एक जवान, पर उदीयमान बैरिस्टरों में हैं। तीन महीने से वह एक राजनैतिक अभियोग की पैरवी करने के लिए सरकार की ओर से लाहौर गए हुए हैं। उन्होंने माया को लिखा था- ''विजय हो गई। पहली तारीख को मैं शाम की मेल से अवश्य पहुँचूँगा।''

आज वही शाम है। माया ने आज सारा दिन तैयारियों में काटा, सारा मकान धुलवाया, कमरों के सजावट के सामान साफ कराए, मोटर धुलवाई, नाना प्रकार के भोजन बनवाए। ये तीन महीने उसने तपस्या करके काटे थे, पर जिसके लिए सारी तैयारियाँ कीं, उसका पता नहीं।

उसकी छोटी बच्ची तिलोत्तमा आकर उसके पैरों से चिपट गई और बोली- ''अम्मा, बाबू जी कब आएँगे?''

माया ने उसे गोद में उठा लिया और सड़क की ओर ताक़ती हुई बोली, ''आते ही होंगे, बेटी। गाड़ी तो कब की आ गई।''

तिलोत्तमा ने माता की गरदन में बाहें डालकर कहा- ''मेरे लिए अच्छी-अच्छी गुड़ियाँ लाते होंगे। ओहो!!''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book