कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 9 प्रेमचन्द की कहानियाँ 9प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का नौवाँ भाग
माया ने पूछा- ''आप कौन हैं?''
तिलोत्तमा ने हँसकर कहा- ''क्या इतनी जल्द भूल गईं? मैं तुम्हारा मनमोहन हूँ।
''आप खूब आए। मैं आपसे आपके हत्यारे का नाम पूछना चाहती हूँ।''
''उसका नाम है ईश्वरदास।''
''कहाँ रहता है? ''
''शाहजहाँपुर।''
माया ने मुहल्ले का नाम, मकान का नंबर, रूप-रंग, सब कुछ विस्तार से पूछकर एक कागज पर नोट कर लिया। एक क्षण-भर बाद तिलोत्तमा अँगड़ाई लेकर उठ बैठी। जब कमरे में फिर प्रकाश हुआ तो माया का मुखमंडल विजय के उल्लास से प्रदीप्त हो उठा था।
उसी रात को माया शाहजहाँपुर के लिए रवाना हो गई।
माया की एक बहन शाहजहाँपुर में रहती थी। ईश्वरदास का पता लगाने में कोई कठिनाई न हुई। माया को भय था कि कहीं प्रेतात्मा की बतलाई हुई बातें मिथ्या न हों। इसलिए जब उसे ईश्वरदास का घर मिला तो उसका हृदय आनदमिश्रित भय से काँप उठा। कल्पना-जगत् की बात सम्मुख आ गई। अब उस कर्त्तव्य को पूरा करना पड़ेगा जो प्रत्यक्ष होकर और भी कठोर हो गया है।
माया ने ईश्वरदास के घर के पास ही एक घर किराए पर ले लिया है। तिलोत्तमा अक्सर खेलती हुई ईश्वरदास के पास चली जाती है। ईश्वरदास अविवाहित है। तिलोत्तमा को देखता है तो गोद में उठा लेता है और खिलाने लगता है। खूनी के जितने लक्षण आत्मा ने बतलाए थे, वे सब मौजूद हैं- वही पहनावा है, वही रूप-रंग है, वही मुद्रा है, वही बातचीत करने का ढंग है; लेकिन माया को कभी-कभी संदेह होने लगता है कि कहीं उसे भ्रम न हो रहा हो। ईश्वरदास इतना सज्जन, इतना हँसमुख, इतना नम्र, इतना खिदमत करने वाला आदमी है कि उसके हाथों किसी का मारा जाना असम्भव-सा मालूम होता है।
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