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प्रेमचन्द की कहानियाँ 10

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9771
आईएसबीएन :9781613015087

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग


धोरेन बगलें झांकने लगा। आखिर भेद खुलना हो गया। मैंने क्या हिमाक़त की जो खत को चाक न कर दिया। उसने वह खत मजिस्ट्रेट के यहाँ देखा था और स्मरण-शक्ति पर बार-बार जोर डाला था कि क्योंकर यह यहाँ पहुँचा। मगर याद ने कुछ काम न दिया। अब हक़ीक़त मालूम हुई और वह अपने ऊपर झुँझलाया, मगर सरला की खुशामद करने लगा- ''मेरी जान! मैं लज्जित हूँ वाकई मुझे लज्जा है, मगर क्या तुम मेरी इस खता को मुआफ नहीं कर सकतीं? अगर किसी के कान में इसकी जरा भी भनक पड़ गई तो मेरी खैर नहीं। अभी तक यह भेद छिपा हुआ है। मजिस्ट्रेट बड़ा बुद्धिमान व्यक्ति है। उसने खत को देखकर मुझे तो रिहा कर दिया, मगर उसे अदालत में पेश नहीं किया। अभी तक यह राज गुप्त है, मगर तुम खूब जानती हो कि लोगों को ऐसी बातों की क्योंकर तलाश रहती है। पब्लिक को दूसरों की रुसवाई और बदनामी में मज़ा आता है। मेरी खातिर से तुम इस चर्चा को ज़बान पर न लाओ। गलतियाँ इसान से होती हैं। अगर तुम इसी में खुश हो तो मैं कहता हूं कि अब कभी उसके दरवाजे पर न जाऊँगा।''

सरला- ''क्यों, तुम उस पर आशिक़ नहीं हो? उसकी आबरू के खौफ़ से तुम क़ैद और देश-निष्कासन झेलने पर आमादा थे और अब तुम कहते हो, मैं उसके दरवाजे पर न जाऊँगा। क्या इतनी जल्द दिल से नक्शे मुहब्बत मिट गया? इन फ़रेब की बातों से कुछ हासिल नहीं। तुम शौक से खुशियाँ मनाओ, मैं जरा भी बाधक न हूँगी। ईर्ष्या का काँटा बनकर किसी के पहलू में खटकना नहीं चाहती।''

धीरेन कुर्सी पर बैठ गए और शोकपूर्ण लहजे में बोले- ''सरला, ऐसी बातें बिलकुल बेमौके और बेज़रूरत हैं। जब तुम देखती हो कि मैं लज्जित और पश्चातापपूर्ण हूँ और वायदा करता हूँ कि अब उससे कोई सरोकार नहीं रखूँगा तो तुम्हें ऐसी बातें करके मेरा दिल नहीं दुखाना चाहिए। क्या तुम नहीं जानतीं कि इन बातों को गुप्त रखने के लिए मैं किस हद तक नुकसान उठाने के लिए तैयार था? जबकि मेरे खिलाफ़ कोई सबूत नहीं था, मगर मुझे देश-निष्कासित होना गवारा था, बजाए इसके कि मंगल के दिन अपने कामों का पता दूँ। अब तक तरह-तरह की अफ़वाहें उड़ती होतीं। यक़ीन मानो, इस रुसवाई के मुक़ाबले में मैं देश-निष्कासित होना बेहतर समझता हूँ।''

सरला- ''अगर राहे-मुहब्बत में क़दम रक्खा है तो रुसवाई का क्या खौफ? अगर तुम्हारी मुहब्बत सच्ची है तो तुम्हें सोसाइटी का इस क़दर खौफ न करना चाहिए।''

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