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प्रेमचन्द की कहानियाँ 10

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :142
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9771
आईएसबीएन :9781613015087

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का दसवाँ भाग


आदमी ने कहा- ''बाबू भागीरथ प्रसाद के घर से आया हूँ। उनके घर में गमी हो गई है।''

मैंने चिंतित होकर पूछा- ''कौन मर गया है?''

आदमी- ''हजूर, यह तो मुझे नहीं मालूम। बस इतना ही कहा है कि गमी की सूचना दे आ।''

यह कहकर वह चलता बना और मेरे मन में भ्रांति का एक तूफ़ान छोड़ गया - कौन मर गया? स्त्री तो बीमार न थी, न कोई बच्चा ही बीमार था। फिर मर कौन गया? अच्छा, समझ गया। स्त्री के बाल-बच्चा होने वाला था। उसी में कुछ गोलमाल हो गया होगा। बेचारी मर गई होगी। घर उजड़ गया। कई छोटे-छोटे बच्चे हैं। कौन उन्हें पालेगा? और तो और, इस जाड़े-पाले में नदी जाना और वह भी नंगे पैर और रात को नदी में स्नान। उसकी मृत्यु क्या हुई, हमारी मृत्यु हुई। यहीं तो हवा से जुकाम हुआ करती है, रात को नहाना तो मौत के मुँह में जाना है।

इस सोच में मैं कई मिनट मूढ़ बना खड़ा रहा। फिर घर में जाकर कपड़े उतारे, धोती ली और नंगे पाँव चला। भगीरथ प्रसाद के घर पहुँचा तो चिराग जल गए थे। द्वार पर कई आदमी मेरी ही तरह धोतियाँ लिए एक तख्त पर बैठे हुए थे।

मैंने पूछा- ''आप लोगों को तो मालूम होगा कौन मर गया है?''

एक महाशय वोले- ''जी नहीं। नाई ने तो इतना ही कहा था, गमी हो गई है। शायद स्त्री का देहांत हो गया है। भगीरथ प्रसाद को बुलाना चाहिए। देर क्यों कर रहे हैं। मालूम नहीं, कफ़न मँगवा लिया है या नहीं। अभी तो कहीं बाँस-फाँस का भी पता नहीं। सारी रात मरना है।'

मैंने द्वार पर जाक़र पुकारा- ''कहाँ हो भाई, क्या हम लोग अंदर आ जाएँ? चारपाई से तो उतार लिया है न?''

भगीरथ प्रसाद एक मिनिट में पान और इलाचयी की तश्तरी लिए, फलालेन का कुरता पहने पान खाते हुए बाहर निकले। बाहर बैठी हुई शोक-मंडली उन्हें देखकर चकित हो गई। यह बात क्या है? न लाश, न कफ़न, न रोना, न पीटना, यह कैसी गमी है? आखिर मैंने डरते-डरते कहा, ''कौन-यानी किसके विषय में, यही आदमी जो आपने भेजा था? तो क्या देर है? ''

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