कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 11 प्रेमचन्द की कहानियाँ 11प्रेमचंद
|
1 पाठकों को प्रिय 113 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का ग्यारहवाँ भाग
सहसा गुमानी ने आकर पुकारा– क्या सो गये तुम, नौज किसी को ऐसी राच्छसी नींद आये! चल कर खा क्यों नहीं लेते? कब तक कोई तुम्हारे लिए बैठा रहे?
हरिधन उस कल्पना-जगत् से क्रूर प्रत्यक्ष में आ गया। वही कुएँ की जगत थी, वही फटा हुआ टाट और गुमानी सामने खड़ी कह रही थी– कब तक कोई तुम्हारे लिए बैठा रहे!
हरिधन उठ बैठा मानों तलवार म्यान से निकाल कर बोला– भला तुम्हें मेरी सुध हो आयी! मैंने तो कह दिया था, मुझे भूख नहीं है।
गुमानी– तो कै दिन न खाओगे?
‘अब इस घर का पानी भी न पियूँगा, तुझे मेरे साथ चलना है या नहीं?’
दृढ़ संकल्प से भरे हुए इन शब्दों को सुन गुमानी सहम उठी। बोली– कहाँ जा रहे हो।
हरिधन ने मानो नशे में कहा– तुझे इससे मतलब? मेरे साथ चलेगी या नहीं? फिर पीछे से न कहना, मुझसे कहा नहीं।
गुमानी आपत्ति के भाव से बोली– तुम बताते क्यों नहीं कहाँ जा रहे हो।
‘तू मेरे साथ चलेगी या नहीं?’
‘जब तक तुम बता न दोगे, मैं न जाऊँगी।’
‘तो मालूम हो गया, तू नहीं जाना चाहती। मुझे इतना ही पूछना था, नहीं अब तक आधी दूर निकल गया होता।’
यह कह कर वह उठा और अपने घर की ओर चला। गुमानी पुकारती रही– ‘सुन लो, ‘सुन लो’ पर उसने पीछे फिर कर भी न देखा।
|