कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 13 प्रेमचन्द की कहानियाँ 13प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का तेरहवाँ भाग
यात्रियों के चले जाने के पश्चात् राना जंगबहादुर ने खड़े होकर कहा- ''सभा के उपस्थित सज्जनो! आज नेपाल के इतिहास में एक नई घटना होनेवाली है जिसे मैं आपकी जातीय नीतिमत्ता की परीक्षा समझता हूँ। इसमें सफल होना आप ही के कर्तव्य पर निर्भर है। आज राज-सभा में आते समय मुझे यह आवेदन पत्र मिला है, जिसे मैं आप सज्जनों की सेवा में उपस्थित करता हूँ। निवेदक ने तुलसीदास की केवल यह चौपाई लिख दी है-
आपतकाल परखिए चारी।
धीरज धर्म मित्र अरु नारी।।
महाराज ने पूछा- ''यह पत्र किसने भेजा है?''
''एक भिखारिनी ने।''
''भिखारिनी कौन है?''
''महारानी चंद्रकुँवरि।''
कड़बड़ खत्री ने आश्चर्य से पूछा- ''जो हमारे मित्र अँग्रेज सरकार से विरुद्ध होकर भाग आई है?''
राना जंगबहादुर ने लज्जित होकर कहा- ''जी हाँ! यद्यपि हम इसी विचार को दूसरे शब्दों में प्रकट कर सकते हैं।''
कड़बड़ खत्री- ''अँगरेजों से हमारी मित्रता है और मित्र के शत्रु की सहायता करना मित्रता की नीति के विरुद्ध है।''
जेनरल शमशेर बहादुर- ''ऐसी दशा में इस बात का भय है कि अँगरेज़ी सरकार से हमारे संबंध टूट न जाएँ।''
राजकुमार रनवीरसिंह- ''हम यह मानते हैं कि अतिथि-सत्कार हमारा धर्म है, किंतु उसी समय तक जब तक कि हमारे मित्रों को हमारी ओर से शंका करने का अवसर न मिले।''
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