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प्रेमचन्द की कहानियाँ 14

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :163
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9775
आईएसबीएन :9781613015124

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग


नईम- कदापि नहीं।

कैलास- आपके मुख से यह शब्द नहीं निकले थे कि बीस हजार की थैली है?

नईम जरा भी न झिझका, जरा भी संकुचित न हुआ। उसकी जबान में लेश-मात्र भी लुकनत न हुई, वाणी में ज़रा भी थरथराहट न आयी। उसके मुख पर अशान्ति, अस्थिरता या असमंजस का कोई भी चिन्ह न दिखाई दिया। वह अविचल खड़ा रहा। कैलास ने बहुत डरते-डरते यह प्रश्न किया था। उसको लेकिन नईम ने निःशक भाव से कहा- सम्भव है, आपने स्वप्न में मुझसे ये बातें सुनी हो।

कैलास एक क्षण के लिए दंग हो गया। फिर उसने विस्मय से नईम की ओर नजर डालकर पूछा- क्या आपने यह नहीं फरमाया था कि मैंने दो-चार अवसरों पर मुसलमानों के साथ पक्षपात किया है, और इसलिए मुझे हिंदू विरोधी समझकर इस अनुसंधान का भार सौंपा गया है?

नईम जरा भी न झिझका। अविचल, स्थिर और शांत भाव से बोला- आपकी कल्पना शक्ति वास्तव में आश्चर्यजनक है। बरसों तक आप के साथ रहने पर भी मुझे यह विदित न हुआ था कि आपमें घटनाओं का आविष्कार करने की ऐसी चमत्कारपूर्ण शक्ति है!

कैलास ने और कोई प्रश्न नहीं किया। उसे अपने पराभव का दुःख न था, दुःख था नईम की आत्मा के पतन का। वह कल्पना भी न कर सकता था कि कोई मनुष्य अपने मुँह से निकली हुई बात को इतनी ढिठाई से अस्वीकार कर सकता है, और वह भी उसी आदमी के मुँह पर, जिससे यह बात कही गई हो यह मानवी दुर्बलता की पराकाष्ठा है। वह नईम जिसका अन्दर और बाहर एक था जिसके विचार और व्यवहार में भेद न था, जिसकी वाणी आंतरिक भावों का दर्पण थी, वह नईम वह सरल आत्माभिमानी, सत्यभक्त नईम, इतना धूर्त, ऐसा मक्कार हो सकता है! क्या दासता के साँचे में ढलकर मनुष्य अपना मनुष्यत्व भी खो बैठता है? क्या यह दिव्य गुणों के रूपांतरित करने का यंत्र है?

अदालत ने नईम को 20 हजार रूपयों की डिक्री दे दी। कैलास पर मानो वज्रपात हो गया।

इस निश्चय पर राजनीतिक संसार में फिर कुहराम मचा। सरकारी पक्ष के पत्रों ने कैलास को धूर्त कहा, जन-पक्षवालों ने नईम को शैतान बताया। नईम के दुस्साहस ने न्याय की दृष्टि में चाहे उसे निरपराध सिद्ध कर दिया हो, पर जनता की दृष्टि में तो उसे और भी गिरा दिया। कैलास के पास सहानुभूति के पत्र और तार आने लगे। पत्रों मे उसकी निर्भीकता और सत्यनिष्ठा की प्रशंसा होने लगी। जगह-जगह सभाएँ और जलसे हुए और न्यायालय के निश्चय पर असंतोष प्रकट किया गया। किंतु सूखे बादलों से पृथ्वी की तृप्ति तो नहीं होती।

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