कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
नईम- और सत्य का गला घोंटना मेरे सिद्धांन्त के अनुकूल।
कैलास- अभी एक पूरा परिवार तुम्हारे गले मढ़ दूँगा, तो अपनी किस्मत को रोओगे। देखने में तुम्हारा आधा भी नहीं हूँ; लेकिन संतानोत्पति में तुम जैसे तीन पर भारी हूँ। पूरे सात हैं, कम न बेश।
नईम- अच्छा लाओ, कुछ खिलाते-पिलाते हो, या तकदीर का मरसिया ही गाये जाओगे? तुम्हारे सिर की कसम बहुत भूखा हूँ। घर से बिना खाना खाए ही चल पड़ा।
कैलास- यहाँ आज सोलहों दंड एकादशी है। सब-के-सब शोक में बैठे उसी अदालत के जल्लाद की राह देख रहे हैं। खाने-पीने का क्या जिक्र! तुम्हारे बेग में कुछ हो तो निकालो; आज साथ बैठकर खा लें, फिर तो जिंदगी भर का रोना है ही।
नईम- फिर तो ऐसी शरारत न करोगे?
कैलास- वाह यह तो आपने रोम-रोम में व्याप्त हो गई है। जब तक सरकार पशुबल से हमारे ऊपर शासन करती रहेगी, हम इसका विरोध करते रहेंगे। खेद यहीं है कि अब मुझे उसका अवसर ही न मिलेगा। किंतु तुम्हें 20000 रु. में से 20 रु. भी न मिलेंगे। यहाँ रद्दियों के ढेर के सिवा और कुछ नहीं है।
नईम- अजी, मैं तुमसे 20 हजार की जगह उसका पँचगुना वसूल कर लूँगा। तुम हो किस फेर में?
कैलास- मुँह धो रखिए !
नईम- मुझे रुपयों की जरूरत है। आओ, कोई समझौता कर लो।
कैलास- कुँवर साहब के 20 हजार रुपये डकार गए, फिर भी अभी संतोष नहीं हुआ? बदहजमी हो जाएगी!
नईम- धन से धन की भूख बढ़ती है, तृप्ति नहीं होती। आओ, कुछ मामला कर लो ! सरकारी कर्मचारी द्वारा मामला करने में और जेरबारी होगी।
कैलास- अरे, तो क्या मामला कर लूँ? यहाँ कागजों के सिवा और कुछ हो भी तो !
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