कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
नईम- मेरा ऋण चुकाने-भर को बहुत है। अच्छा इसी बात पर समझौता कर लो कि मैं जो चीज चाहूँ, ले लूँ। फिर रोना मत।
कैलास- अजी तुम सारा दफ़्तर सिर पर उठा ले जाओ, घर उठा ले जाओ, मुझे पकड़ ले जाओ, और मीठे टुकड़े खिलाओ। कसम ले लो, जो जरा भी चूँ करूँ।
नईम- नहीं, मैं सिर्फ एक चीज चाहता हूँ, सिर्फ एक चीज।
कैलास के कौतूहल की सीमा न रही। सोचने लगा, मेरे पास ऐसी कौन-सी बहुमूल्य वस्तु है? कहीं मुझसे मुसलमान होने को तो न कहेगा? यहाँ धर्म एक चीज है जिसका मूल्य एक से लेकर असंख्य तक रखा जा सकता है। जरा देखूँ तो, हजरत क्या कहते हैं?
उसने पूछा- क्या चीज?
नईम- मिसेज़ कैलास से एक मिनट तक एकांत में बातचीत करने की आज्ञा।
कैलास ने नईम् के सिर पर चपत जमाकर कहा- फिर वही शरारत सैकड़ों बार तो देख चुके हो, ऐसी कौन सी इन्द्र की अप्सरा है?
नईम- वह कुछ भी हो, मामला करते हो, तो करो; मगर याद रखना एकांत की शर्त है।
कैलास- मंजूर है। फिर जो डिक्री के रुपये माँगे गए, तो नोच ही खाऊँगा।
नईम- हाँ, मंजूर है।
कैलास- (धीरे से) मगर यार, नाजुक-मिजाज स्त्री है; कोई बेहूदा मजाक न कर बैठना।
नईम- जी, इन बातों में मुझे आपके उपदेश की जरूरत नहीं। मुझे उनके कमरे में ले चलिए !
कैलास- सिर नीचे किए रहना।
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