कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
कैलास- तुम उमा के सामने मेरी तौहीन करना चाहते हो?
नईम- तुमने सारी दुनिया के सामने मेरी तौहीन नहीं की?
कैलास- तुम्हारी तौहीन की तो उसके लिए २0 हजार रुपये नहीं देने पड़े?
नईम- मैं भी उसी टकसाल के रुपये दे दूँगा। उमा, मैं रुपये पा गया। इस बेचारे का परदा ढका रहने दो।
6. डिप्टी श्यामाचरण
डिप्टी श्यामाचरण की धाक सारे नगर में छायी हई थी। नगर में कोई ऐसा हाकिम न था जिसकी लोग इतनी प्रतिष्ठा करते हों। इसका कारण कुछ तो यह था कि वे स्वभाव के मिलनसार और सहनशील थे और कुछ यह कि रिश्वत से उन्हें बडी घृणा थी। न्याय-विचार ऐसी सूक्ष्मता से करते थे कि दस-बारह वर्ष के भीतर कदाचित उनके दो-ही चार फैसलों की अपील हुई होगी। अंग्रेजी का एक अक्षर न जानते थे, परन्तु बैरिस्टरों और वकीलों को भी उनकी नैतिक पहुंच और सूक्ष्मदर्शिता पर आश्चर्य होता था। स्वभाव में स्वाधीनता कूट-कूट कर भरी थी। घर और न्यायालय के अतिरिक्त किसी ने उन्हें और कहीं आते-जाते नहीं देखा। मुंशी शालिग्राम जब तक जीवित थे, या यों कहिए कि वर्तमान थे, तब तक कभी-कभी चितविनोदार्थ उनके यहाँ चले जाते थे। जब वे लुप्त हो गये, डिप्टी साहब ने घर छोड़कर हिलने की शपथ कर ली। कई वर्ष हुए एक बार कलक्टर साहब को सलाम करने गये थे खानसामा ने कहा- साहब स्नान कर रहे हैं दो घंटे तक बरामदे में एक मोढ़े पर बैठे प्रतीक्षा करते रहे। तदनन्तर साहब बहादुर हाथ में एक टेनिस बैट लिये हुए निकले और बोले- बाबू साहब, हमको खेद है कि आपको हामारी बाट देखनी पडी। मुझे आज अवकाश नहीं है। क्लब-घर जाना है। आप फिर कभी आवें।
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