कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
प्रेमवती ने इस मारधाड़ पर ऐसा उत्पात मचाया कि अन्त में डिप्टी साहब ने भी झल्लाकर पढ़ाना छोड़ दिया। कमला कुछ ऐसा रुपवान, सुकुमार और मधुरभाषी था कि माता उसे सब लडकों से अधिक चाहती थी। इस अनुचित लाड़-प्यार ने उसे पतंग, कबूतरबाजी और इसी प्रकार के अन्य कुव्यसनों का प्रेमी बना दिया था। सबरा हुआ और कबूतर उड़ाये जाने लगे, बटेरों के जोड़ छूटने लगे, संध्या हुई और पतंग के लम्बे-लम्बे पेंच होने लगे। कुछ दिनों में जुए का भी चस्का पड़ चला था। दर्पण, कंघी और इत्र-तेल में तो मानों उसके प्राण ही बसते थे।
प्रेमवती एक दिन सुवामा से मिलने गयी हुई थी। वहां उसने वृजरानी को देखा और उसी दिन से उसका जी ललचाया हआ था कि वह बहू बनकर मेरे घर में आये, तो घर का भाग्य जाग उठे। उसने सुशीला पर अपना यह भाव प्रगट किया। विरजन का तेरहवाँ आरम्भ हो चुका था। पति-पत्नी में विवाह के सम्बन्ध में बातचीत हो रही थी। प्रेमवती की इच्छा पाकर दोनों फूले न समाये। एक तो परिचित परिवार, दूसरे कुलीन लडका, बुद्धिमान और शिक्षित, पैतृक सम्पति अधिक। यदि इनमें नाता हो जाए तो क्या पूछना। चटपट रीति के अनुसार संदेश कहला भेजा।
इस प्रकार संयोग ने आज उस विषैले वृक्ष का बीज बोया, जिसने तीन ही वर्ष में कुल का सर्वनाश कर दिया। भविष्य हमारी दृष्टि से कैसा गुप्त रहता है?
ज्यों ही संदेशा पहुंचा, सास, ननद और बहू में बातें होने लगी।
बहू(चन्द्रा)- क्यों अम्मा। क्या आप इसी साल ब्याह करेंगी?
प्रेमवती- और क्या, तुम्हारे लालाली के मानने की देर है।
बहू- कुछ तिलक-दहेज भी ठहरा।
प्रेमवती- तिलक-दहेज ऐसी लडकियों के लिए नहीं ठहराया जाता।
जब तुला पर लड़की लड़के के बराबर नहीं ठहरती, तभी दहेज का पासंग बनाकर उसे बराबर कर देते हैं। हमारी वृजरानी कमला से बहुत भारी है।
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