कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 14 प्रेमचन्द की कहानियाँ 14प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौदहवाँ भाग
रसिक- कहाँ तक याद करें भैया, यह तो सूक्तियों में बातें करते हैं। और नम्रता का यह हाल है कि अपने को कुछ समझते ही नहीं, महानता का यही लक्षण है। जिसने अपने को कुछ समझा, वह गया। (कम्पनी के स्वामी से) आप तो अब खुद ही सुनेंगे, इस ड्रामा में अपना हृदय निकालकर रख दिया है। कवियों में जो एक प्रकार का अल्हड़पन होता है, उसकी आपमें कहीं गंध भी नहीं। इस ड्रामे की सामग्री जमा करने के लिए आपने कुछ नहीं तो एक हजार बड़े-बड़े पोथों का अध्ययन किया होगा। वाजिदअली शाह को स्वार्थी इतिहास लेखकों ने कितना कलंकित किया है, आप लोग जानते ही हैं। उस लेखराशि को छाँटकर उसमें से सत्य के तत्त्व को खोज निकालना आप ही का काम था।
विनोद- इसलिए हम और आप दोनों कलकत्ता गये वहाँ कोई छः महीने मटियाबुर्ज की खाक छानते रहे। वाजिदअली शाह की हस्तलिखित एक पुस्तक तलाश की। उसमें उन्होंने खुद अपनी जीवनचर्या लिखी है। एक बुढ़िया की पूजा की गई, तब कहीं जाके छः महीने में किताब मिली।
अमरनाथ- पुस्तक नहीं, रत्न है।
मस्तराम- उस वक्त तो उसकी दशा कोयले की थी, गुरुप्रसाद जी ने उस पर मोहर लगाकर अशर्फी बना दिया। ड्रामा ऐसा चाहिए कि जो सुने, दिल हाथों से थाम ले। एक-एक वाक्य दिल में चुभ जाए।
अमरनाथ- संसार-साहित्य के सभी नाटकों को आपने चाट डाला और नाट्य-रचना पर सैकड़ों किताबें पढ़ डालीं।
विनोद- जभी तो चीज भी लासानी हुई है।
अमरनाथ- लाहौर ड्रामेटिक क्लब का मालिक हफ्ते भर यहाँ पड़ा रहा, पैरों पड़ा कि मुझे यह नाटक दे दीजिए; लेकिन आपने न दिया। जब ऐक्टर ही अच्छे नहीं, तो उनसे अपना ड्रामा खेलवाना उसकी मिट्टी खराब करना था।
इस कम्पनी के ऐक्टर माशा अल्लाह अपना जवाब नहीं रखते और इनके नाटककार सारे जमाने से धूम है। आप लोगों के हाथों में पड़कर यह ड्रामा धूम मचा देगा।
विनोद- एक तो लेखक साहब खुद शैतान से ज्यादा मशहूर हैं, उस पर यहाँ के ऐक्टरों का नाट्य-कौशल ! शहर लुट जाएगा।
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