कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 15 प्रेमचन्द की कहानियाँ 15प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का पन्द्रहवाँ भाग
मेरे हाथ पर आंसुओं के कई गरम कतरे टपक पड़े। मूसलाधार बारिश का मुझ पर जर्रा-भर भी असर न हुआ था लेकिन इन चन्द बूंदों ने मुझे सर से पांव तक हिला दिया। मैं बड़े पसोपेश में पड़ गया। एक तरफ कायदे और फर्ज की आहनी दीवार थी, दूसरी तरफ एक सुकुमार युवती का विनती-भरा आग्रह। मैं जानता था अगर उसे सार्जेण्ट के सिपुर्द कर दूंगा तो सवेरा होते ही सारे बटालिन में खबर फैल जाएगी, कोर्टमार्शल होगा, कमाण्डिंग अफसर की लड़की पर भी फौज का लौह कानून कोई रियायत न कर सकेगा। उसके बेरहम हाथ उस पर भी बेदर्दी से उठेंगे। खासकर लड़ाई के जमाने में। और अगर इसे छोड़ दूं तो इतनी ही बेदर्दी से कानून मेरे साथ पेश आयेगा। जिन्दगी खाक में मिल जायेगी। कौन जाने कल जिन्दा भी रहूं या नहीं। कम से कम तनज्जुली तो होगी ही। भेद छिपा भी रहे तो क्या मेरी अन्तरात्मा मुझे सदा न धिक्कारेगी? क्या मैं फिर किसी के सामने इसी दिलेर ढंग से ताक सकूंगा? क्या मेरे दिल में हमेशा एक चोर-सा न समाया रहेगा?
लुईसा बोल उठी- सन्तरी!
विनती का एक शब्द भी उसके मुंह से न निकला। वह अब निराशा की उस सीमा पर पहुंच चुकी थी जब आदमी की वाक्शक्ति अकेले शब्दों तक सीमित हो जाती है। मैंने सहानुभूति के स्वर मे कहा- बड़ी मुश्किल मामला है।
‘सन्तरी, मेरी इज्जत बचा लो। मेरे सामर्थ्य में जो कुछ है वह तुम्हारे लिए करने को तैयार हूं।’
मैंने स्वाभिमानपूर्वक कहा- मिस लुईसा, मुझे लालच न दीजिए, मैं लालची नहीं हूं। मैं सिर्फ इसलिए मजबूर हूं कि फौजी कानून को तोड़ना एक सिपाही के लिए दुनिया में सबसे बड़ा जुर्म है।
‘क्या एक लड़की के सम्मान की रक्षा करना नैतिक कानून नहीं है? क्या फौजी कानून नैतिक कानून से भी बड़ा है?’ लुईसा ने जरा जोश में भरकर कहा।
इस सवाल का मेरे पास क्या जवाब था। मुझसे कोई जवाब न बन पड़ा। फौजी कानून अस्थाई, परिवर्तनशील होता है, परिवेश के अधीन होता है। नैतिक कानून अटल और सनातन होता है, परिवेश से ऊपर। मैंने कायल होकर कहा- जाओ मिस लुईसा, तुम अब आजाद हो, तुमने मुझे लाजवाब कर दिया। मैं फौजी कानून तोड़कर इस नैतिक कर्त्तव्य को पूरा करूंगा। मगर तुमसे केवल वही प्रार्थना है कि आगे फिर कभी किसी सिपाही को नैतिक कर्त्तव्य का उपदेश न देना क्योंकि फौजी कानून फौजी कानून है। फौज किसी नैतिक, आत्मिक या ईश्वरीय कानून की परवाह नहीं करता।
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