कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16 प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16प्रेमचंद
|
4 पाठकों को प्रिय 171 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग
मालिन- भाई, यही तो बड़े आदमियों की बातें है। वे शौक न करें तो हमारा-तुम्हारा निबाह कैसे हो? और धन है किस लिए? अकेली जान पर दस लौंडियाँ हैं। सुना करती थी कि भगवान आदमी का हल भूत जोतता है वह अपनी आँखों देखा। आप-ही-आप पंखा चलने लगे। आप-ही-आप सारे घर में दिन का-सा उजाला हो जाए। तुम झूठ समझते होगे, मगर मैं आँखों देखी बात कहती हूँ।
उस गर्व की चेतना के साथ जो किसी नादान आदमी के सामने अपनी जानकारी के बयान करने में होता है, बूढ़ी मालिन अपनी सर्वज्ञता का प्रदर्शन करने लगी।
मगनदास ने उकसाया- होगा भाई, बड़े आदमी की बातें निराली होती हैं। लक्ष्मी के बस में सब-कुछ है। मगर अकेली जान पर दस लौंडियाँ? समझ में नहीं आता।
मालिन ने बुढ़ापे के चिड़चिड़ेपन से जवाब दिया- तुम्हारी समझ मोटी हो तो कोई क्या करे! कोई पान लगाती है, कोई पंखा झलती है, कोई कपड़े पहनाती है, दो हज़ार रुपये में तो सेजगाड़ी आयी थी, चाहो तो मुँह देख लो, उस पर हवा खाने जाती हैं। एक बंगालिन गाना-बजाना सिखाती है, मेम पढ़ाने आती है, शास्त्री जी संस्कृत पढ़ाते हैं, कागद पर ऐसी मूरत बनाती हैं कि अब बोली और अब बोली। दिल की रानी हैं, बेचारी के भाग फूट गए। दिल्ली के सेठ लगनदास के गोद लिये हुए लड़के से ब्याह हुआ था। मगर राम जी की लीला सत्तर बरस के मुर्दे को लड़का दिया, कौन पतियायेगा। जब से यह सुनावनी आई है, तब से बहुत उदास रहती हैं। एक दिन रोती थीं। मेरे सामने की बात है। बाप ने देख लिया। समझाने लगे। लड़की को बहुत चाहते हैं। सुनती हूँ दामाद को यहीं बुलाकर रक्खेंगे। नारायन करे, मेरी रानी दूधों नहाय पूतों फले। माली मर गया था, उन्होंने आड़ न ली होती तो घर भर के टुकड़े माँगती।
मगनदास ने एक ठण्डी साँस ली। बेहतर है, अब यहाँ से अपनी इज्ज़त-आबरू लिये हुए चल दो। यहाँ मेरा निबाह न होगा। इन्दिरा रईसज़ादी है। तुम इस काबिल नहीं हो कि उसके शौहर बन सको।
मालिन से बोला- तो धर्मशाला में जाता हूँ। जाने वहाँ खाट-वाट मिल जाती है कि नहीं, मगर रात ही तो काटनी है किसी तरह कट ही जाएगी। रईसों के लिए मखमली गद्दे चाहिए, हम मजदूरों के लिए पुआल ही बहुत है।
यह कहकर उसने लुटिया उठाई, डण्डा सम्हाला और दर्द-भरे दिल से एक तरफ़ चल दिया।
|