कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16 प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग
डाक्टर बर्नियर के उग्र तथा हितकर व्याख्यान ने श्रोताओं को प्रभावित कर दिया। शहजादा साहब तो सन्नाटे में आ गये। उन्होंने अभी तक यह नहीं सोचा था कि कंधार से अलग होने के क्या परिणाम होंगे, क्या-क्या कठिनाइयाँ सामने आएँगी। अब डाक्टर बर्नियर के मुँह से इस दुष्परिणाम का वर्णन सुनकर उनके होश उड़ गये।
फिर हेनरी बोजे के इस भाषण ने कुछ ढाढ़स बँधाया, ‘महानुभावो! डाक्टर बर्नियर साहब एक भ्रम में पड़ गये। सम्भवतः उनको ज्ञात नहीं है कि साम्राज्यों को अपना सिक्का जमाने के लिए केवल सेनाओं की ही आवश्यकता नहीं। ऐसे साम्राज्य जिनकी शक्ति हथियारों पर आधारित होती है, लम्बे समय तक नहीं बने रहते। बल्कि आवश्यकता है नैतिक बल की ताकि जनता के मन में उसकी ओर से कोई विपरीत धारणा उत्पन्न न हो। साम्राज्य का हरेक कथन तथा कार्य न्याय व समानता के समर्थन में हो, कोई उसे लालची न समझे। जब तक साम्राज्य इस कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा, न तो उसकी धाक दिलों में बैठेगी और न ही अन्य विपक्षी शक्तियाँ उसका लोहा मानेंगी। मैं मानता हूँ कि साम्राज्य को बहुत साहसी होना चाहिए ताकि जनता के दिल में भी जोश पैदा हो, अपने शासकों से साहस का पाठ पढ़े, लेकिन यह ध्यान रहे कि साहस निरर्थक न हो। निरर्थक साहस और लोभ, दोनों समानार्थी शब्द हैं। मैं एक उदाहरण देकर समझाता हूँ कि सार्थक और निरर्थक साहस से मेरा क्या मंतव्य है। यूरोपीय देश बड़ी तत्परता से जहाज बना रहे हैं। सेनाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। उन जहाजों पर दूर-दूर के देशों की यात्रा की जाती है, अन्य देशों से व्यापारिक अथवा क्षेत्रीय सम्बन्ध बनाए जाते हैं, नयी बस्तियाँ बसाई जाती हैं। इसे मैं सार्थक साहस कहता हूँ। लेकिन जब किसी कमजोर देश या शक्ति को तलवार के बल पर अधीन करने की कोशिश की जाती है तो मैं उसे निरर्थक साहस कहता हूँ क्योंकि उसके आवरण में अनीति और असमानता छिपी रहती है। अब आप स्वयं निर्णय कर सकते हैं कि भारतीय साम्राज्य का कंधार को अभियान भेजना सार्थक है या निरर्थक। मैं कहता हूँ निरर्थक है, नितान्त निरर्थक।
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