कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16 प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग
आनंदी से मिलने के पहले गोपीनाथ को स्त्रियों का जो कुछ ज्ञान था, वह केवल पुस्तकों पर अवलम्बित था। स्त्रियों के विषय में प्राचीन और अर्वाचीन, प्राच्य और पाश्चात्य, सभी विद्वानों का ही एक मत था- ये मायावी, आत्मिक उन्नति की बाधक, परमार्थ की विरोधिनी, वृत्तियों को कुमार्ग की ओर ले जानेवाली, हृदय को संकीर्ण बनानेवाली होती हैं। इन्हीं कारणों से उन्होंने इस मायावी जाति से अलग रहना ही श्रेयष्कर समझा था, किंतु अनुभव बतला रहा था कि स्त्रियाँ सन्मार्ग की ओर भी ले जा सकती हैं, उनमें सदगुण भी हो सकते हैं, वे कर्त्तव्य और सेवा के भावों को जाग्रत भी कर सकती हैं। तब उनके मन में प्रश्न उठता, यदि आनंदी से मेरा विवाह होता, तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी? उसके साथ तो मेरा जीवन आनंद से कट जाता।
एक दिन वह आनंदी के यहाँ गये, तो सिर में दर्द हो रहा था। कुछ लिखने की इच्छा न हुई। आनंदी को इसका कारण मालूम हुआ, तो उसने उनके सिर में धीरे-धीरे तेल मलना शुरू किया। गोपीनाथ को उस समय अलौकिक सुख मिल रहा था। मन में प्रेम की तरंगें उठ रही थीं - नेत्र, मुख, वाणी - सभी प्रेम में पगे जाते थे। उसी दिन से उन्होंने आनंदी के यहाँ आना छोड़ दिया। एक सप्ताह बीत गया, और न आये। आनंदी ने लिखा- आपसे पाठशाला-सम्बन्धी कई विषयों में राय लेनी है। अवश्य आइए। तब भी न गये। उसने फिर लिखा- मालूम होता है आप मुझसे नाराज हैं। मैंने जान-बूझकर तो कोई ऐसा काम नहीं किया, लेकिन यदि वास्तव में आप नाराज हैं तो मैं यहाँ रहना उचित नहीं समझती। अगर आप अब भी न आएँगे तो मैं द्वितीय अध्यापिका को चार्ज देकर चली जाऊँगी। गोपीनाथ पर इस धमकी का कुछ भी असर न हुआ। अब भी न गये। अंत में दो महीने तक खिंचे रहने के बाद उन्हें ज्ञात हुआ कि आनंदी बीमार है, और दो दिन से पाठशाला नहीं आ सकी। तब किसी तर्क या युक्ति से अपने को न रोक सके। पाठशाला में आये, और कुछ झिझकते, कुछ सकुचाते, आनंदी के कमरे में कदम रखा। देखा, तो वह चुपचाप पड़ी हुई थी। मुख पीला था, उसने उनकी ओर दया-प्रार्थी नेत्रों से देखा। उठना चाहा, पर अशक्ति ने उठने न दिया। गोपीनाथ ने आर्द्र कंठ से कहा- लेटी रहो, लेटी रहो, उठने की जरूरत नहीं। मैं बैठ जाता हूँ। डाक्टर साहब आये थे?
मिश्राइन ने कहा- जी हाँ, दो बार आये थे। दवा दे गए हैं।
गोपीनाथ ने नुस्खा देखा। डाक्टरी का साधारण ज्ञान था। नुस्खे से ज्ञात हुआ, हृदयरोग है। औषधियाँ सभी पुष्टिकर और बलवर्द्धक थीं। आनंदी की ओर फिर देखा। उसकी आँखों से अश्रु-धारा बह रही थी। उसका गला भी भर आया। हृदय मसोसने लगा। गद्गद होकर बोले- आनंदी, तुमने मुझे पहले इसकी सूचना न दी, नहीं तो रोग इतना न बढ़ने पाता।
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