कहानी संग्रह >> प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16 प्रेमंचन्द की कहानियाँ 16प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सोलहवाँ भाग
आनंदी- कोई बात नहीं, अच्छी हो जाऊँगी, जल्द ही अच्छी हो जाऊँगी। मर भी जाऊँगी, तो कौन रोनेवाला बैठा हुआ है! यह कहते-कहते वह फूट-फूट कर रोने लगी।
गोपीनाथ दार्शनिक थे, पर अभी तक उनके मन के कोमल भाव शिथिल न हुए थे। कंपित स्वर में बोले- आनंदी, संसार में कम-से-कम एक ऐसा आदमी है, जो तुम्हारे लिए अपने प्राण तक दे देगा। यह कहते-कहते वह रुक गए। उन्हें अपने शब्द और भाव कुछ भद्दे और उच्छृंखल से जान पड़े। अपने मनोभावों को प्रकट करने के लिए वह इन सराहनीय शब्दों की अपेक्षा कहीं अधिक काव्यमय, रसपूर्ण अनुरक्त शब्दों का व्यवहार करना चाहते थे, पर इस वक्त याद न पड़े।
आनंदी ने पुलकित होकर कहा- दो महीने तक किस पर छोड़ दिया था?
गोपीनाथ- इन दो महीनों में मेरी जो दशा हुई यह मैं ही जानता हूँ। यही समझ लो कि मैंने आत्महत्या नहीं की, यही बड़ा आश्चर्य है। मैंने न समझा था कि अपने व्रत पर स्थिर रहना मेरे लिए इतना कठिन हो जायगा।
आनंदी ने गोपीनाथ का हाथ धीरे से अपने हाथ में लेकर कहा- अब तो कभी इतनी कठोरता न कीजिएगा?
गोपीनाथ- (संकुचित होकर) अंत क्या है?
आनंदी- कुछ भी हो?
गोपीनाथ- कुछ भी हो?
आनंदी- हाँ, कुछ भी हो।
गोपीनाथ- अपमान, निंदा, उपहास आत्मवेदना!
आनंदी- कुछ भी हो, मैं सब कुछ सह सकती हूँ, और आपके हेतु सहना पड़ेगा।
गोपीनाथ- आनंदी, मैं अपने प्रेम को बलिदान कर सकता हूँ, लेकिन अपने नाम को नहीं। इस नाम को अकलंकित रखकर मैं समाज की बहुत कुछ सेवा कर सकता हूँ।
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