कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 17 प्रेमचन्द की कहानियाँ 17प्रेमचंद
|
9 पाठकों को प्रिय 340 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग
सेवती- ''नहीं, ज्वर-स्वर कुछ नहीं। चैन से बैठी हूँ।''
दयाशंकर- ''तुम्हारा पुराना वायुगोला तो नहीं उभर आया?''
सेवती- (व्यंग्य से) ''हाँ, वायुगोला ही है। लाओ कोई दवा है?''
दयाशंकर- ''अभी डाँक्टर के यहाँ से मँगवाता हूँ।''
सेवती- ''कुछ मुफ्त की रक़म हाथ लग गई है, क्या? लाओ मुझे दे दो, अच्छी हो जाऊँ।''
दयाशंकर- ''तुम तो हँसी कर रही हो। साफ़-साफ़ कोई बात नहीं कहतीं। क्या मेरे देर से आने का यही दंड है? मैंने नौ बजे आने का वचन दिया था। शायद दो-चार मिनट अधिक हुए हों। सब चीज़ें तैयार हैं न?''
सेवती- ''हाँ, बहुत ही खस्ता। आधो-आध मक्खन डाला था।''
दयाशंकर- ''आनंदमोहन से मैंने तुम्हारी खूब प्रशंसा की है।''
सेवती- ''ईश्वर ने चाहा, तो वह भी प्रशंसा ही करेंगे। पानी रख आओ, हाथ-वाथ तो धोवें।''
दयाशंकर- ''चटनियाँ भी बनवा ली हैं न? आनंदमोहन को चटनियों से बहुत प्रेम है।''
सेवती- ''खूब चटनी खिलाओ। सेरों बना रखी है।''
दयाशंकर- ''पानी में केवड़ा डाल दिया है?''
सेवती- ''हाँ, ले जाकर पानी रख आओ। पीना आरंभ करें, प्यास लगी होगी।''
आनंदमोहन- (बाहर से) ''मित्र, शीघ्र आइये। अब इंतज़ार करने की शक्ति नहीं है।''
दयाशंकर- ''जल्दी मचा रहा है। लाओ थालियाँ परसो।''
सेवती- ''पहले चटनी और पानी तो रख आओ।''
|