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प्रेमचन्द की कहानियाँ 17

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :281
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9778
आईएसबीएन :9781613015155

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सत्रहवाँ भाग


सेवती- ''नहीं, ज्वर-स्वर कुछ नहीं। चैन से बैठी हूँ।''

दयाशंकर- ''तुम्हारा पुराना वायुगोला तो नहीं उभर आया?''

सेवती- (व्यंग्य से) ''हाँ, वायुगोला ही है। लाओ कोई दवा है?''

दयाशंकर- ''अभी डाँक्टर के यहाँ से मँगवाता हूँ।''

सेवती- ''कुछ मुफ्त की रक़म हाथ लग गई है, क्या? लाओ मुझे दे दो, अच्छी हो जाऊँ।''

दयाशंकर- ''तुम तो हँसी कर रही हो। साफ़-साफ़ कोई बात नहीं कहतीं। क्या मेरे देर से आने का यही दंड है? मैंने नौ बजे आने का वचन दिया था। शायद दो-चार मिनट अधिक हुए हों। सब चीज़ें तैयार हैं न?''

सेवती- ''हाँ, बहुत ही खस्ता। आधो-आध मक्खन डाला था।''

दयाशंकर- ''आनंदमोहन से मैंने तुम्हारी खूब प्रशंसा की है।''

सेवती- ''ईश्वर ने चाहा, तो वह भी प्रशंसा ही करेंगे। पानी रख आओ, हाथ-वाथ तो धोवें।''

दयाशंकर- ''चटनियाँ भी बनवा ली हैं न? आनंदमोहन को चटनियों से बहुत प्रेम है।''

सेवती- ''खूब चटनी खिलाओ। सेरों बना रखी है।''

दयाशंकर- ''पानी में केवड़ा डाल दिया है?''

सेवती- ''हाँ, ले जाकर पानी रख आओ। पीना आरंभ करें, प्यास लगी होगी।''

आनंदमोहन- (बाहर से) ''मित्र, शीघ्र आइये। अब इंतज़ार करने की शक्ति नहीं है।''

दयाशंकर- ''जल्दी मचा रहा है। लाओ थालियाँ परसो।''

सेवती- ''पहले चटनी और पानी तो रख आओ।''

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