कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19 प्रेमचन्द की कहानियाँ 19प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग
श्यामसरूप- ''अब तक तो नहीं छिपाती थी, मगर आज जरूर छिपा रही हो। आँखें मिलाओ, मेरी तरफ़ देखो। लोग कहते हैं, औरतें एक निगाह में मर्दों की मुहब्बत का अंदाज़ कर लिया करती हैं, मगर शायद तुमने अब तक मेरी मुहब्बत की थाह नहीं पाई। यकीन मानो, तुम्हारी इस खिन्नता ने आज मुझे बहुत बेचैन रखा। अगर इस वक्त भी न बताओगी तो मैं समझूँगा तुम्हें मुझ पर एतबार नहीं है।'' कोलेसरी की आँखें अश्रुपूरित हो गईं। पंडित जी की तरफ़ देखकर बोली- ''मेरे दिल में जो कांटा खटक रहा है, उसे आप निकालेंगे?''
श्यामसरूप के रोंगटे खड़े हो गए। घबराकर उठ बैठे और काँपती हुई आवाज़ से कहा- ''कोला! तुम यह सवाल पूछकर मुझ पर जुल्म कर रही हो। मैं और मेरा सब-कुछ तुम पर से निसार है। तुम्हें मेरी तरफ़ से ऐसा ख्याल नहीं रखना चाहिए।''
कोलेसरी समझ गई कि ज़बान से कुछ-का-कुछ निकल गया, बोली- ''मेरा ईश्वर जानता हैं कि मैंने कभी तुम्हारी मुहब्बत पर शक नहीं किया। मैंने यह सवाल सिर्फ इसलिए पूछा था कि शायद तुम मेरे उदास होने का सबब सुनकर हँसी में उड़ा दो। मैं यह जानती हूँ कि मैं जो कुछ कहूँगी, वह मुझे नहीं कहना चाहिए। यह भी जानती हूँ कि आपको इस बात के मानने में बहुत दिली सदमा होगा। इसीलिए मैं आपसे छिपाना चाहती थी। बात ही तो थी, दो-चार महीने में भूल जाती, मगर आपकी इस धमकी ने मुझे मजबूर कर दिया। जिस दिन आप यह ख्याल करेंगे कि मुझे आप पर एतबार नहीं है, तो जानते हो मेरी क्या गत होगी... यह धमकी मुझे मजबूर कर रही है।
श्यामसरूप- ''हाँ, हाँ, बेखौफ़ कहो, मुझे अब सब्र नहीं है।''
कोलेसरी- ''आप अछूतों के साथ मिलना-जुलना, खाना-पीना छोड़ दें।''
जैसे बेगुनाह क़ैदी मुंसिफ की ज़बान से सजा का हुक्म सुनकर लंबी साँस खींचता है, उसी तरह पंडित जी ने एक आह-सर्द भरी और जरा देर के लिए मौन होकर लेट गए। फिर उठकर बोले- ''बहुत अच्छा, तुम्हारे हुक्म की तामील होगी। दिल को सदमा बेशक होगा, लेकिन कोई आपत्ति नहीं। सिर्फ़ इतना और बतला दो कि यह हुक्म किसके संकेत से दिया गया है या दिल में खुद-ब-खुद पैदा हुआ है?''
कोलेसरी- ''मुझे औरतें ताना देती हैं और मुझसे इसकी बर्दाश्त नहीं होती। उनकी जबान पर मेरा कोई दावा नहीं, वे जो चाहें कहें। आप पर मेरा दावा है, इसीलिए आपसे कहती हूँ।''
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