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प्रेमचन्द की कहानियाँ 19

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9780
आईएसबीएन :9781613015179

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग


कोलेसरी- ''क्यों, कहाँ जाओगे?''

श्यामसरूप- ''शहर के बाहर का एक मुकदमा ले लिया है। भागलपुर जा रहा हूँ।''

कोलेसरी- ''क्या अभी?''

श्यामसरूप- ''कल ही तो तारीख है।''

छ: बजे शाम की डाक से पंडित जी भागलपुर सिधारे और चार दिन तक मुक़दमे की पैरवी में व्यस्त रहे। तीन दिन का वादा करके आए थे, चार दिन लग गए। पाँचवें दिन फुरसत हुई। तीन बजे पटना पहुँचे और घर की तरफ़ चले। अपने मोहल्ले में दाखिल हुए तो माँज गाँव का सनपत चौधरी दिखाई दिया। पंडित जी ने कहा- ''चौधरी जी, कहा के धावे हैं?''

चौधरी ने चौंककर सिर उठाया और बोला- ''पालागन, आपकी तो कल अवाई थी। देर काहे से हुई?''

पंडित जी- ''कल नहीं आ सका। और तो सब खैरियत है?''

चौधरी- ''सब आपकी कृपा है। आज तो आपके यहाँ बड़ा जलसा है।''

पंडित जी (ताज्जुब से) - ''मेरे यहाँ? कैसा जलसा?''

चौधरी- ''बहूजी ने सभा करी है। हम लोगन की सब औरतें न्यौते में आई हैं।''

पंडित जी खुश-खुश आगे बढ़े तो सैकड़ों मित्र सूरतें इधर-उधर आते-जाते दिखाई दीं, गोया देहातियों की बारात आ गई हो। सबको सलाम, बंदगी करते हुए अपने दरवाजे पर पहुँचे तो मेला-सा लगा हुआ था। फ़र्श पर सैकड़ों आदमी बैठे हुक्का-तम्बाकू कर रहे थे। कोलेसरी ने औरतों को निमंत्रण दिया था। ये आदमी औरतों के साथ आए थे।

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