कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 19 प्रेमचन्द की कहानियाँ 19प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का उन्नीसवाँ भाग
मानी- अम्माँ तुम्हें घर में घुसने न देंगी। मेरे कारण तुम्हें भी झिड़कियाँ मिलेंगी।
गोकुल- इसकी कोई परवाह नहीं है। उनकी तो यह आदत ही है।
ताँगा पहुँच गया। इंद्रनाथ की माता विचारशील महिला थीं। उन्होंने आकर वधू को उतारा और भीतर ले गयीं।
गोकुल वहाँ से घर चला तो ग्यारह बज रहे थे। एक ओर तो शुभ कार्य के पूरा करने का आनंद था, दूसरी ओर भय था कि कल मानी न जायगी, तो लोगों को क्या जवाब दूँगा। उसने निश्चय किया, चलकर साफ-साफ कह दूँ। छिपाना व्यर्थ है। आज नहीं कल, कल नहीं परसों तो सब-कुछ कहना ही पड़ेगा। आज ही क्यों न कह दूँ।
यह निश्चय करके वह घर में दाखिल हुआ।
माता ने किवाड़ खोलते हुए कहा- इतनी रात तक क्या करने लगे? उसे भी क्यों न लेते आये? कल सवेरे चौका-बर्तन कौन करेगा?
गोकुल ने सिर झुकाकर कहा- वह तो अब शायद लौटकर न आये अम्माँ, उसके वहीं रहने का प्रबंध हो गया है।
माता ने आँखें फाड़कर कहा- क्या बकता है, भला वह वहाँ कैसे रहेगी?
गोकुल- इंद्रनाथ से उसका विवाह हो गया है।
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