कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 22 प्रेमचन्द की कहानियाँ 22प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बाइसवाँ भाग
पंडित दुर्गानाथ के लिए ये तीन दिन कठिन परीक्षा के थे। एक ओर कुँवर साहब की प्रभावशालिनी बातें, दूसरी ओर किसानों की हाय-हाय, परंतु विचार-सागर में तीन दिन तक निमग्न रहने के पश्चात् इन्हें धरती का सहारा मिल गया। उनकी आत्मा ने कहा-यह पहली परीक्षा है। यदि इसमें अनुत्तीर्ण रहे तो फिर आत्मिक दुर्बलता ही हाथ रह जाएगी। निदान निश्चय हो गया कि मैं अपने लाभ के लिए इतने गरीबों को हानि न पहुँचाऊँगा।
दस बजे दिन का समय था। न्यायालय के सामने मेला-सा लगा हुआ था। जहाँ-तहाँ श्याम वस्त्राच्छादित देवताओं की पूजा हो रही थी। चाँदपार के किसान झुंड-के-झुंड एक पेड़ के नीचे आकर बैठे। उनके कुछ दूर पर कुँवर साहब के मुख्तार आम, सिपाहियों और गवाहों की भीड़ थी। ये लोग अत्यंत विनोद में थे। जिस प्रकार मछलियाँ पानी में पहुँचकर किलोले करती हैं, उसी भाँति ये लोग भी आनंद में चूर थे। कोई पान खा रहा था, कोई हलवाई दूकान से पूरियों के पत्तल लिए चला आता था। उधर बेचारे किसान पेड़ के नीचे चुप-चाप उदास बैठे थे कि आज न जाने क्या होगा, कौन आफ़त आएगी, भगवान का भरोसा है। मुक़दमे की पेशी हुई। कुँवर साहब की ओर के गवाह गवाही देने लगे कि ये असामी बड़े सरकश हैं। जब लगान माँगा जाता है तो लड़ाई-झगड़े पर तैयार हो जाते हैं। अबकी इन्होंने एक कौड़ी भी नहीं दी। कादिर खाँ ने रोकर अपने सिर की चोट दिखाई। सबके पीछे पंडित दुर्गानाथ की पुकार हुई। उन्हीं के बयान पर निपटारा था। वकील साहब ने उन्हें खूब तोते की भाँति पढ़ा रखा था, किंतु उनके मुख से पहला वाक्य निकला था कि मजिस्ट्रेट ने उनकी ओर तीव्र दृष्टि से देखा। वकील साहब बगलें झाँकने लगे। मुख्तार आम ने उनकी ओर घूर कर देखा। अहलमद, पेशकार आदि सबके सब उनकी ओर आश्चर्य की दृष्टि से देखने लगे।
न्यायाधीश ने तीव्र स्वर में कहा- ''तुम जानते हो कि मजिस्ट्रेट के सामने खड़े हो?''
दुर्गानाथ (दृढ़तापूर्वक)- ''जी हाँ, भली-भाँति जानता हूँ।''
न्यायाधीश - ''तुम्हारे ऊपर असत्य भाषण का अभियोग लगाया जाता है।''
दुर्गानाथ- ''अवश्य, यदि मेरा कथन झूठा हो।''
वकील ने कहा- ''जान पड़ता है किसानों के दूध घी और भेंट आदि ने यह कायापलट कर दी है।'' और न्यायाधीश की ओर सार्थक दृष्टि से देखा।
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