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प्रेमचन्द की कहानियाँ 34

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :146
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9795
आईएसबीएन :9781613015322

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौंतीसवाँ भाग


कालदेव के गिरते ही बुंदेलों को सब्र न रहा। हर एक चेहरे पर निर्बल क्रोध और कुचले हुए घमंड की तसवीर खिंच गई। हज़ारों आदमी जोश में आकर अखाड़े पर दौड़े, पर हरदौल ने कहा- 'खबरदार! अब कोई आगे न बढ़े।'

इस आवाज़ ने पैरों के साथ जंजीर का काम किया। दर्शकों को रोककर जब वे अखाड़े में गए और कालदेव को देखा, तो आँखों में आँसू भर आए। जख्मी शेर जमीन पर पड़ा तड़प रहा था। उसके जीवन की तरह उसके तलवार के दो टुकड़े हो गए थे।

आज का दिन बीता। रात आई पर बुंदेलों की आँखों में नींद कहाँ? लोगों ने करवटें बदलकर रात काटी। जैसे दुःखित मनुष्य विकलता से सुबह की बाट जोहता है, उसी तरह बुंदेले रह-रहकर आकाश की तरफ़ देखते और उसकी धीमी चाल पर झुँझलाते थे। उनके जातीय घमंड पर गहरा घाव लगा था। दूसरे दिन ज्यों ही सूर्य निकला, तीन लाख बुंदेले तालाब के किनारे पहुँचे। जिस समय भालदेव शेर की तरह अखाड़े की तरफ़ चला, दिलों में धड़कन-सी होने लगी। कल जब कालदेव अखाड़े में उतरा था, बुंदेलों के हौसले बढ़े हुए थे, पर आज वह बात न थी। हृदयों में आशा की जगह डर घुसा हुआ था। जब क़ादिरखाँ कोई चुटीला बार करता तो लोगों के दिल उछल कर होठों तक आ जाते थे। सूर्य सिर पर चढ़ा आता था और लोगों के दिल बैठे जाते थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि भालदेव अपने भाई से फुर्तीला और तेज था। उसने कई बार क़ादिरखाँ को नीचा दिखलाया, पर दिल्ली का निपुण पहलवान हर बार सम्हल जाता था। पूरे तीन घंटे तक दोनों बहादुरों में तलवारें चलती रहीं। एकाएक खट्टाक की आवाज़ हुई और भालदेव की तलवार के टुकड़े हो गए। राजा हरदौल अखाड़े के सामने खड़े थे। उन्होंने भालदेव की तरफ़ तेजी से अपनी तलवार फेंकी। भालदेव तलवार लेने के लिए झुका ही था कि क़ादिरखां की तलवार उसकी गर्दन पर आ पड़ी। घाव गहरा न था, केवल एक 'चरका' था, पर उसने लड़ाई का फ़ैसला कर दिया।

हताश बुंदेले अपने-अपने घरों को लौटे। यद्यपि भालदेव अब भी लड़ने को तैयार थे, पर हरदौल ने समझाकर कहा कि- ''भाइयो! हमारी हार उसी समय हो गई, जब हमारी तलवार ने जवाब दे दिया। यदि हम क़ादिरखाँ की जगह होते तो निहत्थे आदमी पर वार न करते और जब तक हमारे शत्रु के हाथ में तलवार न आ जाती, हम उस पर हाथ न उठाते; पर क़ादिरखाँ में यह उदारता कहाँ? बलवान् शत्रु का सामना करने में उदारता को ताक पर रख देना पड़ता है तो भी हमने दिखा दिया है कि तलवार की लड़ाई में हम उसके बराबर हैं और अब हमको यह दिखाना रहा है कि हमारी तलवार में वैसा ही जौहर है।'' इसी तरह लोगों को तसल्ली देकर राजा हरदौल रनिवास को गए।

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