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प्रेमचन्द की कहानियाँ 37

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9798
आईएसबीएन :9781613015353

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग


एक दिन प्रेमसिंह बाजार गया हुआ था। रास्ते में उसने देखा कि एक घर में आग लगी हुई है। आग के ऊंचे-ऊंचे डरावने शोले हवा में अपने झण्डे लहरा रहे हैं और एक औरत दरवाजे पर खड़ी सर पीट-पीट कर रो रही है। यह बेचारी विधवा स्त्री थी, उसका बच्चा अंदर सो रहा था कि घर में आग लग गयी। वह दौड़ी कि गांव के आदमियों को आग बुझाने के लिए बुलाये कि इतने में आग ने जोर पकड़ लिया और अब तमाम जलते हुए शोलों का उमड़ा हुआ दरिया उसे उसके प्यारे बच्चे से अलग किये हुए था। प्रेमसिंह के दिल में उस औरत की दर्दनाक आहें चुभ गयीं। वह बेधड़क आग में घुस गया और सोते हुए बच्चे को गोद में लेकर बाहर निकल आया। विधवा स्त्री ने बच्चे को गोद में ले लिया और उसके कोमल गालों को बार-बार चूमकर आंखों में आंसू भर लायी और बोली- महाराज, तुम जो कोई हो, मैं आज अपना बच्चा तुम्हें भेंट करती हूं। तुम्हें ईश्वर ने और भी लड़के दिये होंगे, उन्हीं के साथ इस अनाथ की भी खबर लेते रहना। तुम्हारे दिल में दया है, मेरा सब कुछ अग्नि देवी ने ले लिया, अब इस तन के कपड़े के सिवा मेरे पास और कोई चीज नहीं। मैं मजदूरी करके अपना पेट पाल लूंगी। यह बच्चा अब तुम्हारा है।

प्रेमसिंह की आंखें डबडबा गयीं, बोला- बेटी, ऐसा न कहो, तुम मेरे घर चलो और ईश्वर ने जो कुछ रूखा-सूखा दिया है, वह खाओ। मैं भी दुनिया में बिलकुल अकेला हूं, कोई पानी देने वाला नहीं है। क्या जाने परमात्मा ने इसी बहाने से हम लोगों को मिलाया हो। शाम के वक्त जब प्रेमसिंह घर लौटा तो उसकी गोद में एक हंसता हुआ फूल जैसा बच्चा था और पीछे-पीछे एक पीली और मुरझायी औरत। आज प्रेमसिंह का घर आबाद हुआ। आज से उसे किसी ने शाम के वक्त नदी के किनारे खामोश बैठे नहीं देखा।

इसी बच्चे के लिए सांप की मणि लाने का निश्चय करके प्रेमसिंह आधी रात के वक्त कमर में तलवार लगाये, चौंक-चौंककर कदम रखता बरगद के पेड़ की तरफ चला।

जब पेड़ के नीचे पहुंचा तो मणि की दमक ज्यादा साफ नजर आने लगी। मगर सांप का कहीं पता न था। प्रेमसिंह बहुत खुश हुआ, शायद सांप कहीं चरने गया है। मगर जब मणि को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो वहां साफ जमीन के सिवाय और कोई चीज न दिखाई दी। बूढ़े जाट का कलेजा सन से हो गया ओर बदन के रोंगटे खड़े हो गये। यकायक उसे अपने सामने कोई चीज लटकती हुई दिखाई दी। प्रेमसिंह ने तेगा खींच लिया और उसकी तरफ लपका मगर देखा तो वह बरगद की जटा थी। अब प्रेमसिंह का डर बिलकुल दूर हो गया। उसने उस जगह को, जहां से रोशनी की लौ निकल रही थी, अपनी तलवार से खोदना शुरु किया। जब एक बित्ता जमीन खुद गयी तो तलवार किसी सख्त चीज से टकरायी और लौ भड़क उठी। यह एक छोटा-सा तेगा था मगर प्रेमसिंह के हाथ में आते ही उसकी लपट जैसी चमक गायब हो गई।

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