कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 37 प्रेमचन्द की कहानियाँ 37प्रेमचंद
|
158 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का सैंतीसवाँ भाग
रात के नौ बजे होंगे कि एक आदमी काला कंबल ओढ़े एक बांस का सोंटा लिए शाही खेमे से बाहर निकला और बस्ती की तरफ आहिस्ता-आहिस्ता चला। आज महानगर भी खुशी से ऐंठ रहा हैं। दरवाजों पर कई-कई बत्तियोंवाले चौमुखे दीवट जल रहे हैं। दरवाजों के सहन झाड़कर साफ कर दिये गये हैं। दो-एक जगह शहनाइयां बज रही हैं और कहीं-कहीं लोग भजन गा रहे हैं। काली कमलीवाला मुसाफिर इधर-उधर देखता-भालता गांव चौपाल में जा पहुंचा। चौपाल खूब सजा हुआ था और गांव के बड़े लोग बैठे हुए इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर बहस कर रहे थे कि महाराजा रणजीतसिंह की सेवा में कौन-सी भेंट पेश की जाए। आज महाराज ने इस गांव को अपने कदमों से रोशन किया है, तो इस गांव के बसनेवाले सोच रहे थे कि ऐसे शुभ अवसर कहां आते हैं। सब लोग सर झुकाये चिंतित बैठे थे। किसी की अकल कुछ काम नहीं करती थी। वहां अनमोल जवाहरात की किश्तियां कहां? पूरे घंटे भर तक किसी ने सर न उठाया। यकायक बूढ़ा प्रेमसिंह खड़ा हो गया और बोला- अगर आप लोग पसंद करें तो मैं विक्रमादित्य की तलवार नजराने के लिए दे सकता हूँ।
इतना सुनते ही सबके सब आदमी खुशी से उछल पड़े और एक हुल्लड़ सा मच गया। इतने में एक मुसाफिर कमली ओढ़े चौपाल के अंदर आया और हाथ उठाकर बोला-भाइयों, वाह गुरु की जय!
चेतराम बोला- तुम कौन हो?
मुसाफिर- राहगीर हूं, पेशावर जाना है। रात ज्यादा आ गई है इसलिए यहीं लेट रहूंगा।
टेकसिंह- हां-हां, आराम से सोओ। चारपाई की जरूरत हो तो मंगा दूं।
मुसाफिर- नहीं, आप तकलीफ न करें, मैं इसी टाट पर लेट रहूंगा। अभी आप लोग विक्रमादित्य की तलवार की कुछ बातचीत कर रहे थे। यही सुनकर चला आया। वर्ना बाहर ही पड़ा रहता। क्या यहां किसी के पास विक्रमादित्य की तलवार है?
मुसाफिर की बातचीत से साफ जाहिर होता था कि वह कोई शरीफ आदमी है। उसकी आवाज में वह कशिश थी जो कानों को अपनी तरफ खींच लिया करती है। सबकी आंखें उसकी तरफ उठ गईं। पंडित चेतराम बोले- जी हां, अर्सा हुआ महाराज विक्रमादित्य का तेगा जमीन से निकला है।
मुसाफिर- यह क्योंकर मालूम हुआ कि यह तेगा उन्हीं का है?
|