कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 38 प्रेमचन्द की कहानियाँ 38प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग
चक्रधर ने कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि से देखा और वहाँ जाकर बैठ गये। थोड़ी देर के बाद लूसी भी अपनी जगह पर बैठी। अब पंडितजी बार-बार उसकी ओर सापेक्ष भाव से ताकते रहे कि वह कुछ बातचीत करे, और वह प्रोफेसर का भाषण सुनने में तन्मय हो रही है। आपने समझा शायद लज्जावश नहीं बोलती। लज्जाशीलता रमणियों का सबसे सुंदर भूषण भी तो है। उसके डेस्क की ओर मुँह फेर-फेरकर ताकने लगे। उसे इनके पान चबाने से शायद घृणा होती थी- बार-बार मुँह दूसरी ओर फेर लेती। किंतु पंडितजी इतने सूक्ष्मदर्शी, इतने कुशाग्रबुद्धि न थे। इतने प्रसन्न थे मानो सातवें आसमान पर हैं। सबको उपेक्षा की दृष्टि से देखते थे मानो प्रत्यक्ष रूप से कह रहे थे कि तुम्हें यह सौभाग्य कहाँ नसीब? मुझ-सा प्रतापी और कौन होगा?
दिन तो गुजरा। संध्या-समय पंडितजी नईम के कमरे में आये और बोले- यार, एक लेटर-राइटर (पत्र-व्यवहार-शिक्षक) की आवश्यकता है। किसका लेटर-राइटर सबसे अच्छा है?
नईम ने गिरिधर की ओर कनखियों से देखकर पूछा- लेटर-राइटर लेकर क्या कीजिएगा?
गिरिधर- फजूल है। नईम खुद किस लेटर-राइटर से कम है।
चक्रधर ने कुछ सकुचाते हुए कहा- अच्छा, कोई प्रेम-पत्र लिखना हो, तो कैसे आरम्भ किया जाय।
नईम- 'डार्लिंग' लिखते हैं। और जो बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध हो, तो डियर 'डार्लिंग' लिख सकते हैं।
चक्रधर- और समाप्त कैसे करना चाहिए?
नईम- पूरा हाल बताइए तो खत ही न लिख दें?
चक्रधर- नहीं, आप इतना बता दीजिए, मैं लिख लूँगा।
नईम- अगर बहुत प्यारा माशूक हो, तो लिखिए- Your Dying Lover और अगर साधारण प्रेम हो तो लिख सकते हैं-Yours' for ever ।
चक्रधर- कुछ शुभकामना के भाव भी तो रहने चाहिए न?
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