कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 40 प्रेमचन्द की कहानियाँ 40प्रेमचंद
|
6 पाठकों को प्रिय 420 पाठक हैं |
प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग
‘छोटा आदमी भर-पेट खाके बैठता, है तो समझता है, अब बादशाह हमीं है। लेकिन अपनी हैसियत को भूलना न चाहिए।’
‘बहुत पक्की बातें कहते हो खाँ साहब! अपनी असलियत पर डटे रहो। जो राजा है, वह राजा है! जो परजा है, वह परजा है। भला परजा कहीं राजा हो सकता है?’
इतने में जयराम ने आकर कहा- राम-राम भाइयों राम-राम! पाँच-छह खद्दरधारी मनुष्यों को देखकर सभी लोग उनकी ओर शंका और कुतूहल से ताकने लगे। दूकानदार ने चुपके से अपने एक नौकर के कान में कुछ कहा और नौकर दूकान से उतरकर चला गया। जयराम ने झंडे को जमीन पर खड़ा करके कहा- भाइयों, महात्मा गाँधी का हुक्म है कि आप लोग ताड़ी-शराब न पियें। जो रुपये आप यहाँ उड़ा देते हैं, वह अगर अपने बाल-बच्चों को खिलाने में खर्च करें, तो कितनी अच्छी बात हो। जरा देर के नशे के लिए आप अपने बाल-बच्चों को भूखों मारते हैं, गंदे घरों में रहते हैं, महाजन की गालियाँ खाते हैं। सोचिए, इस रुपये से आप अपने प्यारे बच्चों को कितने आराम से रख सकते हैं!
एक बूढ़े शराबी ने अपने साथी से कहा- भैया, है तो बुरी चीज, घर तबाह करके छोड़ देती है। मुदा इतनी उमर पीते कट गयी, तो अब मरते दम क्या छोड़ें?
उसके साथी ने समर्थन किया- पक्की बात कहते हो चौधरी! जब इतनी उमर पीते कट गयी, तो अब मरते दम क्या छोड़ें?
जयराम ने कहा- वाह चौधरी यही तो उमिर है छोड़ने की। जवानी तो दीवानी होती है, उस वक्त सब कुछ मुआफ है।
चौधरी ने तो कोई जवाब न दिया! लेकिन उसके साथी ने, जो काला, मोटा, बड़ी-बड़ी मूँछोंवाला आदमी था, सरल आपत्ति के भाव से कहा- अगर पीना बुरा है, तो अँगरेज क्यों पीते हैं?
जयराम वकील था, उससे बहस करना भिड़ के छत्ते को छेड़ना था। बोला- यह तुमने बहुत अच्छा सवाल पूछा भाई। अँगरेजों के बाप-दादा अभी डेढ़-दो सौ साल पहले लुटेरे थे। हमारे-तुम्हारे बाप-दादा ऋषि-मुनि थे। लुटेरों की संतान पिये, तो पीने दो। उनके पास न कोई धर्म है, न नीति! लेकिन ऋषियों की संतान उनकी नकल क्यों करे? हम और तुम उन महात्माओं की संतान हैं, जिन्होंने दुनिया को सिखाया, जिन्होंने दुनिया को आदमी बनाया। हम अपना धर्म छोड़ बैठे, उसी का फल है कि आज हम गुलाम हैं। लेकिन अब हमने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का फैसला कर लिया है और...
|