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प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801
आईएसबीएन :9781613015384

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


जयराम ने और जोर से उसकी गर्दन दबायी और बोला- हां, ले लूंगा? ऐसे दुष्ट की यही सजा है।

मिसेज़ सक्सेना ने अधिकार-गर्व से गर्दन उठाकर कहा- आपको यहां आने का कोई अधिकार नहीं है।

एक दर्शक ने कहा- ऐसा दबाओ बाबूजी, कि साला ठंडा हो जाय। इसने देवी जी को ऐसा ढकेला कि बेचारी गिर पड़ीं। हमें तो बोलने का हुक्म नहीं है, नहीं तो हड्डी तोड़ कर रख देते।

जयराम ने शराबी की गर्दन छोड़ दी। वह किसी बाज के चगुंल से छूटी हुई चिड़िया की तरह सहमा हुआ खड़ा हो गया। उसे एक धक्का देते हुए उसने मिसेज़ सक्सेना से कहा- आप यहां से चलती क्यों नहीं? आप जायं, मैं बैठता हूं; अगर एक छटांक शराब बिक जाय, तो मेरा कान पकड़ लीजियेगा। उसका दम फूलने लगा। आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था। वह खड़ा न रह सका। जमीन पर बैठ कर रुमाल से माथे का पसीना पोंछने लगा। मिसेज़ सक्सेना ने परिहास करके कहा- आप कांग्रेस नहीं हैं कि मैं आपका हुक्म मानूं। अगर आप यहां से न जायंगे, तो मैं सत्याग्रह करुंगी। फिर एकाएक कठोर होकर बोलीं- जब तक कांग्रेस ने इस काम का भार मुझ पर रखा है, आपको मेरे बीच में बोलने का कोई हक नहीं है। आप मेरा अपमान कर रहे हैं। कांग्रेस-कमेटी के सामने आपको इसका जवाब देना होगा। जयराम तिमिला उठा। बिना कोई जवाब दिये लौट पड़ा और वेग से घर की तरफ चला; पर ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता था, उसकी गति मंद होती जाती थी। यहां तक कि बाजार के दूसरे सिरे पर आ कर वह रुक गया। रस्सी यहां खतम हो गयी। उसके आगे जाना उसके लिए असाध्य हो गया। जिस झटके ने उसे यहां तक भेजा था, उसकी शक्ति अब शेष हो गयी थी। उन शब्दों में जो कटुता और चोट थी, अब उसे सहानुभूति और स्नेह की सुगंध आ रही थी। उसे फिर चिंता हुई न जाने वहां क्या हो रहा है। कहीं उन बदमाशों ने और कोई दुष्टता न की हो, या पुलिस न आ जाय। वह बाजार की तरफ मुड़ा लेकिन एक कदम ही चल कर फिर रुक गया। ऐसे पसोपेश में वह कभी न पड़ा था। सहसा उसे वही स्वयंसेवक दौड़ता आता दिखाई देता। वह बदहवास होकर उससे मिलने के लिए खुद भी उसकी तरफ दौड़ा। बीच में दोनों मिल गये। जयराम ने हांफते हुए पूछा- क्या हुआ? क्यों भागे जा रहे हो?

स्वयंसेवक ने दम लेकर कहा- बड़ा गजब हो गया बाबू जी! आपके आने के बाद वह काला शराबी बोतल लेकर दूकान से चला, तो देवी जी दरवाजे पर बैठ गयीं। वह बार-बार देवी जी को हटाकर निकलना चाहता है; पर वह फिर आ कर बैठ जाती हैं। धक्कम-धक्के में उनके कुछ कपड़े फट गये हैं और कुछ चोट भी... अभी बात पूरी न हुई थी कि जयराम शराबखाने की तरफ दौड़ा।

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