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प्रेमचन्द की कहानियाँ 40

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :166
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9801
आईएसबीएन :9781613015384

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग


‘हां अच्छी तरह है।'

'और केदारनाथ?'

'वह भी अच्छी तरह हैं।'

'तो फिर माजरा क्या है?'

'कुछ तो नहीं।'

'तुमने तार दिया और कहती हो- कुछ तो नहीं।'

'दिल घबरा रहा था, इससे तुम्हें बुला लिया। सुन्जी को किसी तरह समझा कर यहाँ लाना है। मैं तो सब कुछ करके हार गयी।'

‘क्या इधर कोई नई बात हो गयी?'

'नयी तो नहीं है; लेकिन एक तरह से नयी ही समझो, केदार एक ऐक्ट्रेस के साथ कहीं भाग गया। एक सप्ताह से उसका कहीं पता नहीं है। सुन्नी से कह गया है- जब तक तुम रहोगी घर में नहीं आऊँगा। सारा घर सुन्नी का शत्रु हो रहा है; लेकिन वह वहाँ से टलने का नाम नहीं लेती। सुना है केदार अपने बाप के दस्तखत बनाकर कई हज़ार रुपये बैंक से ले गया है।'

'तुम सुन्नी से मिली थीं?'

'हाँ, तीन दिन से बराबर जा रही हूँ।'

'वह नहीं आना चाहती, तो रहने क्यों नहीं देती?'

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