कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 40 प्रेमचन्द की कहानियाँ 40प्रेमचंद
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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चालीसवाँ भाग
'वहाँ घुट-घुट कर मर जायगी।'
'मैं उन्ही पैरों लाला मदारीलाल के घर चला। हालाँकि मैं जानता था कि सुन्नी किसी तरह न आयगी; मगर वहाँ पहुँचा, तो देखा-कुहराम मचा हुआ है। मेरा कलेजा धक से रह गया। वहाँ तो अर्थी सज रही थी। मुहल्ले के सैकड़ों आदमी जमा थे। घर में से ‘हाय! हाय!' की क्रन्दन-ध्वनि आ रही थी। यह सुन्नी का शव था।
मदारीलाल मुझे देखते ही मुझसे उन्मत की भाँति लिपट गये और बोले- भाई साहब, मैं तो लुट गया। लड़का भी गया, बहू भी गयी, ज़िन्दगी ही गारत हो गयी।
मालूम हुआ कि जब से केदार गायब हो गया था, सुन्जी और भी ज्यादा उदास रहने लगी थी। उसने उसी दिन अपनी चूडियां तोड़ डाली थीं और मांग का सिंदूर पोंछ डाला था। सास ने जब आपत्ति की, तो उनको अपशब्द कहे। मदारीलाल ने समझाना चाहा तो उन्हें भी जली-कटी सुनायी। ऐसा अनुमान होता था- उन्माद हो गया है। लोगों ने उससे बोलना छोड़ दिया था। आज प्रातःकाल यमुना स्नान करने गयी। अँधेरा था, सारा घर सो रहा था, किसी को नहीं जगाया। जब दिन चढ़ गया और बहू घर में न मिली, तो उसकी तलाश होने लगी। दोपहर को पता लगा कि यमुना गयी है, लोग उधर भागे। वहाँ उसकी लाश मिली। पुलिस आयी, शव की परीक्षा हुई। अब जा कर शव मिला है। मैं कलेजा थाम कर बैठ गया। हाय, अभी थोड़े दिन पहले जो सुन्दरी पालकी पर सवार होकर आयी थी, आज वह चार के कंधे पर जा रही है।
मैं अर्थी के साथ हो लिया और वहाँ से लौटा, तो रात के दस बज गये थे। मेरे पाँव काँप रहे थे। मालूम नहीं, यह खबर पा कर गोपा की क्या दशा होगी। प्राणान्त न हो जाय, मुझे यही भय हो रहा था। सुन्नी उसकी प्राण थी। उसके जीवन का केन्द्र थी। उस दुखिया के उद्यान में यही पौधा बच रहा था। उसे वह हृदय रक्त से सींच-सींचकर पाल रही थी। उसके बसन्त का सुनहरा स्वप्न ही उसका जीवन था-उसमें कोपलें निकलेंगी, फूल खिलेंगे, फल लगेंगे, चिड़ियाँ उसकी डालियों पर बैठकर अपने सुहाने राग गायेंगी; किन्तु आज निष्ठुर नियति ने उस जीवन सूत्र को उखाड़ कर फेंक दिया। और अब उसके जीवन का कोई आधार न था। वह बिन्दु ही मिट गया था, जिस पर जीवन की सारी रेखाएँ आकर एकत्र हो जाती थीं।
दिल को दोनों हाथों से थामे, मैंने जंजीर खटखटायी। गोपा एक लालटेन लिए निकली। मैंने गोपा के मुख पर एक नये आनन्द की झलक देखी।
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