लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचन्द की कहानियाँ 42

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9803
आईएसबीएन :9781613015407

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

222 पाठक हैं

प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का बयालीसवाँ भाग


रत्नसिंह के साथ मुश्किल से सौ आदमी थे, किन्तु सभी मँजे हुए, अवसर और संख्या को तुच्छ समझनेवाले, अपनी जान के दुश्मन। वे वीरोल्लास से भरे हुए एक वीर रस पूर्ण पद गाते हुए घोड़ों को बढ़ाए चले जाते थे-
बाँकी तेरी पाग सिपाही, इसकी रखना लाज।
तेग-तबर कुछ काम न आवे, बखतर ढाल व्यर्थ हो जावे।
रखियो मन में लाग, सिपाही बाँकी तेरी पाग।
इसकी रखना लाज।

पहाड़ियाँ इन वीर-स्वरों से गूँज रही थीं, घोड़ों की टापें ताल दे रही थीं। यहाँ तक की रात बीत गई, सूर्य ने अपनी लाल आँखें खोल दीं, और वीरों पर अपनी स्वर्गच्छटा की वर्षा करने लगा।

वही रक्तमय प्रकाश में शत्रुओं की सेना एक पहाड़ी पर पड़ाव डाले हुए नजर आई!

रत्नसिंह सिर झुकाए, वियोग-व्यथित हृदय को दबाए, मंद गति से पीछे-पीछे चला जाता था। कदम आगे बढ़ता था, पर मन पीछे हटता था। आज जीवन में पहली बार दुश्चिताओं ने उसे आशंकित कर रखा था। कौन जानता है, लड़ाई का अंत क्या होगा! जिस स्वर्ग सुख को छोड़कर आया था, उसकी स्मृतियाँ रह-रहकर उसके हृदय को मसोस रही थीं। चिंता की सजल आँखें याद आती थीं, और जी चाहता था, घोड़े की रास पीछे मोड़ दे। प्रतिक्षण रणोत्साह क्षीण होता जाता था। सहसा एक सरदार ने समीप आकर कहा- भैया, वह देखो, ऊँची पहाड़ी पर शत्रु डेरा डाले पड़ा है। तुम्हारी अब क्या राय है? हमारी तो यह इच्छा है कि तुरन्त उन पर धावा कर दे। गाफिल पड़े हुए हैं, भाग खड़े होंगे। देर करने से वे भी सँभल जायँगे, और तब मामला नाजुक हो जाएगा एक हजार से कम न होंगे।

रत्नसिंह  ने चिंतित नेत्रों से शत्रु-दल की ओर देखकर कहा- हाँ मालूम तो होता है।

सिपाही- तो धावा कर दिया जाए न?

रत्न- जैसी तुम्हारी इच्छा। संख्या अधिक है, यह सोच लो।

सिपाही- इसकी परवा नहीं। हम इससे बड़ी सेनाओं को परास्त कर चुके हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book