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प्रेमचन्द की कहानियाँ 44

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :179
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9805
आईएसबीएन :9781613015421

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौवालीसवाँ भाग


लड़का- तुझे शर्म नहीं आती?

बुढ़िया- शर्म किसे कहते हैं बेटा, इतने साधू-सन्यासी-नंगे रहते हैं, उनको पत्थर से क्यों नहीं मारते?

लड़का- वे तो मर्द हैं।

बुढ़िया- क्या शर्म औरतों ही के लिए है, मर्दों को शर्म नहीं आनी चाहिए?

लड़का- तुझे जो कोई जो कुछ दे देता है, उसे तू खा लेती है। तू पागल नहीं तो और क्या है?

बुढ़िया- इसमें पागलपन की क्या बात है बेटा? भूख लगती है, पेट भर लेती हूं।

लड़का- तुझे कुछ विचार नहीं है? किसी के हाथ की चीज खाते घिन नहीं आती?

बुढ़िया- घिन किसे कहते है बेटा, मैं भूल गई।

लड़का- सभी को घिन आती है, क्या बता दूं, घिन किसे कहते हैं।

दूसरा लड़का- तू पैसे क्यों हाथ से फेंक देती है? कोई कपड़े देता है तो क्यों छोड़कर चल देती है? पगली नहीं तो क्या है?

बुढ़िया- पैसे, कपड़े लेकर क्या करुं बेटा?

लड़का- और लोग क्या करते हैं? पैसे-रुपये का लालच सभी को होता है।

बुढ़िया- लालच किसे कहते हैं बेटा, मैं भूल गई।

लड़का- इसी से तुझे पगली नानी कहते हैं। तुझे न लोभ है, घिन है, न विचार है, न लाज है। ऐसों ही को पागल कहते हैं।

बुढ़िया- तो यही कहो, मैं पगली हूं।

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