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प्रेमचन्द की कहानियाँ 44

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :179
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9805
आईएसबीएन :9781613015421

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का चौवालीसवाँ भाग


पण्डितजी को आजकल खाना खाते वक्त भागा-भाग-सी पड़ जाती है। वे न जाने क्यों गोदावरी से एकान्त में बातचीत करते डरते हैं। न मालूम कैसी कठोर और हृदयविदारक बातें वह सुनाने लगे। इसलिए खाना खाते वक्त वे डरते रहते थे कि कहीं उस भयंकर समय का आगमन न हो जाए। गोदावरी अपने तीव्र नेत्रों से उनके मन का यह भाव ताड़ जाती थी, पर मन ही मन में ऐंठकर रह जाती थी।

एक दिन उससे न रहा गया। वह बोली– क्या मुझसे बोलने की भी मनाही कर दी गई है? देखती हूँ, कहीं तो रात-रात भर बातों का तार नहीं टूटता, पर मेरे सामने मुँह न खोलने की कसम-सी खाई है। घर का रंग-ढंग देखते हो न? अब तो सब काम तुम्हारे इच्छानुसार चल रहा है न?

पण्डितजी ने सिर नीचा करते हुए उत्तर दिया– उहँ! जैसे चलता है, वैसे चलता है। उस फिक्र से क्या अपनी जान दे दूँ? जब तुम यह चाहती हो कि घर मिट्टी में मिल जाए, तब फिर मेरा क्या वश है?

इस पर गोदावरी ने बड़े कठोर वचन कहे। बात बढ़ गई। पण्डितजी चौके पर से उठ आए। गोदावरी ने कसम दिलाकर उन्हें बिठाना चाहा, पर वे वहाँ क्षण भर भी न रुके! तब उसने भी रसोई उठा दी। सारे घर को उपवास करना पड़ा।

गोमती में एक विचित्रता यह थी कि वह कड़ी से कड़ी बातें सहन कर सकती थी, पर भूख सहन करना उसके लिए बड़ा कठिन था। इसीलिए कोई व्रत भी न रखती थी। हाँ कहने-सुनने को जन्माष्टमी रख लेती थी। पर आजकल बीमारी के कारण उसे और भी भूख लगती थी। जब उसने देखा कि दोपहर होने को आयी और भोजन मिलने के कोई लक्षण नहीं, तब विवश होकर बाजार से मिठाई मँगायी। सम्भव है, उसने गोदावरी को जलाने के लिए ही यह खेल खेला हो, क्योंकि कोई भी एक वक्त खाना न खाने से मर नहीं जाता। गोदावरी के सिर से पैर तक आग लग गई। उसने भी तुरन्त मिठाइयाँ मँगवायीं। कई वर्ष के बाद आज उसने पेट भर मिठाइयाँ खायीं। ये सब ईर्ष्या के कौतुक हैं।

जो गोदावरी दोपहर के पहले मुँह में पानी नहीं डालती थी, वह अब प्रात:काल ही कुछ जलपान किए बिना नहीं रह सकती। सिर में वह हमेशा मीठा तेल डालती थी, पर अब मीठे तेल से उसके सिर में पीड़ा होने लगती थी। पान खाने का उसे नया व्यसन लग गया। ईर्ष्या ने उसे नई नवेली बहू बना दिया।

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