कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
सच! -आश्चर्य-भरी
कृतज्ञता उसकी वाणी में थी।
सच
फिरोज़ा! अहमद मेरा मित्र है, और भी एक काम के लिए तुमको भेज रहा हूँ। उसे
जाकर समझाओ कि वह अपनी सेना लेकर पंजाब के बाहर इधर-उधर हिन्दुस्तान में
लूट-पाट न किया करे। मैं कुछ दिनों में सुल्तान से कहकर ख़ज़ाने और
मालगुजारी का अधिकार भी उसी को दिला दूँगा। थोड़ा समझकर धीरे-धीरे काम
करने से सब हो जायगा। समझी न, दरबार में इस पर गर्मागर्मी है कि अहमद की
नियत ख़राब है। कहीं ऐसा न हो कि मुझी को सुल्तान इस काम के लिए भेजें।
फिरोज़ा,
मैं हिन्दुस्तान नहीं जाना चाहता। मेरी एक छोटी बहन थी, वह वहाँ है? क्या
दु:ख उसने पाया? मरी या जीती है, इन कई बरसों से मैंने इसे जानने की
चेष्टा भी नहीं की। और भी.... मैं हिन्दू हूँ, फिरोज़ा! आज तक अपनी
आकांक्षा में भूला हुआ, अपने आराम में मस्त, अपनी उन्नति में विस्मृत,
गजनी में बैठा हिन्दुस्तान को, अपनी जन्मभूमि को और उसके दु:ख-दर्द को भूल
गया हूँ। सुल्तान महमूद के लूटों की गिनती करना, उस रक्त-रंजित धन की
तालिका बनाना, हिन्दुस्तान के ही शोषण के लिए सुल्तान को नयी-नयी तरकीबें
बताना, यही तो मेरा काम था, जिससे आज मेरी इतनी प्रतिष्ठा है। दूर रह कर
मैं सब कुछ कर सकता था; पर हिन्दुस्तान कहीं मुझे जाना पड़ा-उसकी गोद में
फिर रहना पड़ा-तो मैं क्या करूँगा! फिरोज़ा, मैं वहाँ जाकर पागल हो
जाऊँगा। मैं चिर-निर्वासित, विस्मृत अपराधी! इरावती मेरी बहन! आह, मैं उसे
क्या मुँह दिखलाऊँगा। वह कितने कष्टों में जीती होगी! और मर गई हो तो...
फिरोज़ा! अहमद से कहना, मेरी मित्रता के नाते मुझे इस दु:ख से बचा ले।
|