कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
आपको क्रोध आ गया, क्यों
महाशय!
आने की बात ही है। ले
लीजिये अपनी अठन्नी।
अठन्नी
देकर ईश्वर में विश्वास नहीं कराया जाता। उस चोट के बारे में पुलिस से
जाकर न कहने के लिए भी अठन्नी की आवश्यकता नहीं। मैं यह मानता हूँ कि
सृष्टि विषमता से भरी है, चेष्टा करके भी इसमें आर्थिक या शारीरिक साम्य
नहीं लाया जा सकता। हाँ, तो भी ऐश्वर्यवालों को, जिन पर भगवान् की पूर्ण
कृपा है, अपनी सहृदयता से ईश्वर का विश्वास कराने का प्रयत्न करना चाहिए।
कहिए, इस तरह भगवान् की समस्या सुलझाने के लिए आप प्रस्तुत हैं?
इस
बूढ़े नास्तिक और तार्किक से अमरनाथ को तीव्र विरक्ति हो चली थी। अब वह
चलने के लिए देवनिवास से कहनेवाला था; किन्तु उसने देखा, वह तो झोपड़ी में
आसन जमाकर बैठ गया है। अमरनाथ को चुप देखकर देवनिवास ने बूढ़े से कहा—
अच्छा, तो आप मेरे घर चलकर रहिए। सम्भव है कि मैं आपकी सेवा कर सकूँ। तब
आप विश्वासी बन जायँ, तो कोई आश्चर्य नहीं। इस बार तो वह बुड्ढा बुरी तरह
देवनिवास को घूरने लगा। निवास वह तीव्र दृष्टि सह न सका। उसने समझा कि
मैंने चलने के लिए कहकर बूढ़े को चोट पहुँचाई है। वह बोल उठा— क्या
आप....?
ठहरो भाई! तुम बड़े
जल्दबाज मालूम होते हो— बूढ़े ने कहा। क्या सचमुच तुम
मेरी सेवा किया चाहते हो या....?
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