कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
राजकुमार!
मैं कृषक-बालिका हूँ। आप नन्दनबिहारी और मैं पृथ्वी पर परिश्रम करके
जीनेवाली। आज मेरी स्नेह की भूमि पर से मेरा अधिकार छीन लिया गया है। मैं
दु:ख से विकल हूँ; मेरा उपहास न करो।
मैं कोशल-नरेश से
तुम्हारी भूमि तुम्हें दिलवा दूंगा।
नहीं, वह कोशल का
राष्ट्रीय नियम है। मैं उसे बदलना नहीं चाहती-चाहे उससे
मुझे कितना ही दु:ख हो।
तब तुम्हारा रहस्य क्या
है?
यह
रहस्य मानव-हृदय का है, मेरा नहीं। राजकुमार, नियमों से यदि मानव-हृदय
बाध्य होता, तो आज मगध के राजकुमार का हृदय किसी राजकुमारी की ओर न खिंच
कर एक कृषक-बालिका का अपमान करने न आता। मधूलिका उठ खड़ी हुई।
चोट
खाकर राजकुमार लौट पड़ा। किशोर किरणों में उसका रत्नकिरीट चमक उठा। अश्व
वेग से चला जा रहा था और मधूलिका निष्ठुर प्रहार करके क्या स्वयं आहत न
हुई? उसके हृदय में टीस-सी होने लगी। वह सजल नेत्रों से उड़ती हुई धूल
देखने लगी।
मधूलिका ने राजा का
प्रतिपादन, अनुग्रह नहीं लिया। वह
दूसरे खेतों में काम करती और चौथे पहर रूखी-सूखी खाकर पड़ रहती।
मधूक-वृक्ष के नीचे छोटी-सी पर्णकुटीर थी। सूखे डंठलों से उसकी दीवार बनी
थी। मधूलिका का वही आश्रय था। कठोर परिश्रम से जो रूखा अन्न मिलता, वही
उसकी साँसों को बढ़ाने के लिए पर्याप्त था।
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