कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
मधूलिका! बाहुबल ही तो
वीरों की आजीविका है। ये मेरे जीवन-मरण के साथी
हैं, भला मैं इन्हें कैसे छोड़ देता? और करता ही क्या?
क्यों? हम लोग परिश्रम से
कमाते और खाते। अब तो तुम...।
भूल
न करो, मैं अपने बाहुबल पर भरोसा करता हूँ। नये राज्य की स्थापना कर सकता
हूँ। निराश क्यों हो जाऊँ? - अरुण के शब्दों में कम्पन था; वह जैसे कुछ
कहना चाहता था; पर कह न सकता था।
नवीन राज्य! ओहो,
तुम्हारा उत्साह तो कम नहीं। भला कैसे? कोई ढंग बताओ, तो
मैं भी कल्पना का आनन्द ले लूँ।
कल्पना
का आनन्द नहीं मधूलिका, मैं तुम्हें राजरानी के सम्मान में सिंहासन पर
बिठाऊँगा! तुम अपने छिने हुए खेत की चिन्ता करके भयभीत न हो।
एक
क्षण में सरल मधूलिका के मन में प्रमाद का अन्धड़ बहने लगा - द्वन्द्व मच
गया। उसने सहसा कहा- आह, मैं सचमुच आज तक तुम्हारी प्रतीक्षा करती थी,
राजकुमार!
अरुण ढिठाई से उसके हाथों
को दबाकर बोला- तो मेरा भ्रम था, तुम सचमुच मुझे
प्यार करती हो?
युवती
का वक्षस्थल फूल उठा, वह हाँ भी नहीं कह सकी, ना भी नहीं। अरुण ने उसकी
अवस्था का अनुभव कर लिया। कुशल मनुष्य के समान उसने अवसर को हाथ से न जाने
दिया। तुरन्त बोल उठा- तुम्हारी इच्छा हो, तो प्राणों से पण लगाकर मैं
तुम्हें इस कोशल-सिंहासन पर बिठा दूँ। मधूलिके! अरुण के खड्ग का आतंक
देखोगी?
मधूलिका एक बार काँप उठी।
वह कहना चाहती थी...नहीं; किन्तु उसके मुँह से
निकला- क्या?
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