कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
सत्य
मधूलिका, कोशल-नरेश तभी से तुम्हारे लिए चिन्तित हैं। यह मैं जानता हूँ,
तुम्हारी साधारण-सी प्रार्थना वह अस्वीकार न करेंगे। और मुझे यह भी विदित
है कि कोशल के सेनापति अधिकांश सैनिको के साथ पहाड़ी दस्युओं का दमन करने
के लिए बहुत दूर चले गये हैं।
मधूलिका की आँखों के आगे
बिजलियाँ हँसने लगी। दारुण भावना से उसका मस्तक
विकृत हो उठा। अरुण ने कहा- तुम बोलती नहीं हो?
जो कहोगे, वह
करूँगी....मन्त्रमुग्ध-सी मधूलिका ने कहा।
स्वर्णमञ्च
पर कोशल-नरेश अर्द्धनिद्रित अवस्था में आँखे मुकुलित किये हैं। एक
चामधारिणी युवती पीछे खड़ी अपनी कलाई बड़ी कुशलता से घुमा रही है। चामर के
शुभ्र आन्दोलन उस प्रकोष्ठ में धीरे-धीरे सञ्चलित हो रहे हैं।
ताम्बूल-वाहिनी प्रतिमा के समान दूर खड़ी है।
प्रतिहारी ने आकर कहा- जय
हो देव! एक स्त्री कुछ प्रार्थना लेकर आई है।
आँख खोलते हुए महाराज ने
कहा- स्त्री! प्रार्थना करने आई? आने दो।
प्रतिहारी के साथ मधूलिका
आई। उसने प्रणाम किया। महाराज ने स्थिर दृष्टि
से उसकी ओर देखा और कहा- तुम्हें कहीं देखा है?
तीन बरस हुए देव! मेरी
भूमि खेती के लिए ली गई थी।
ओह, तो तुमने इतने दिन
कष्ट में बिताये, आज उसका मूल्य माँगने आई हो,
क्यों? अच्छा- अच्छा तुम्हें मिलेगा। प्रतिहारी!
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