कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
अमरनाथ-
नहीं, अब हमारी यह इच्छा है कि तुम सबको लेकर उसी जगह चलें। यहाँ कई वर्ष
रहते भी हुआ किन्तु कार्य सिद्ध होने की कुछ भी आशा नहीं है, तो फिर अपना
व्यापार क्यों नष्ट होने दें? इसलिये, अब तुम सबको वहीं चलना होगा। न होगा
तो ब्राह्म हो जायँगे, किन्तु यह उपेक्षा अब सही नहीं जाती।
मदन,
मृणालिनी के संगम से बहुत ही प्रसन्न है। सरला मृणालिनी भी प्रफुल्लित है।
किशोरनाथ भी उसे बहुत ही प्यार करता है, प्राय: उसी को साथ लेकर हवा खाने
के लिए जाता है। दोनों में बहुत ही सौहार्द है। मदन भी बाहर किशोरनाथ के
साथ और घर आने पर मृणालिनी की प्रेममयी वाणी से आप्यायित रहता है।
मदन
का समय सुख से बीतने लगा। किन्तु बनर्जी महाशय के सपरिवार बाहर जाने की
बातों ने एक बार उसके हृदय को उद्वेगपूर्ण बना दिया। वह सोचने लगा कि मेरा
क्या परिणाम होगा, क्या मुझे भी चलने के लिए आज्ञा देंगे? और, यदि ये चलने
के लिए कहेंगे, तो मैं क्या करूँगा? इनके साथ जाना ठीक होगा या नहीं?
इन
सब बातों को वह सोचता ही था कि इतने में किशोरनाथ ने अकस्मात् आकर उसे
चौंका दिया। उसने खड़े होकर पूछा- कहिये, आप लोग किस सोच-विचार में पड़े
हुए हैं? कहाँ जाने का विचार है?
क्यों, क्या तुम न चलोगे?
कहाँ?
जहाँ हम लोग जायँ।
वही तो पूछता हूँ कि आप
लोग कहाँ जायँगे?
सीलोन।
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