कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
31. मधुआ
आज सात दिन हो गये, पीने को कौन कहे - छुआ तक नहीं! आज सातवाँ दिन है, सरकार!तुम झूठे हो। अभी तो तुम्हारे कपड़े से महँक आ रही है।
वह ... वह तो कई दिन हुए। सात दिन से ऊपर-कई दिन हुए-अन्धेरे में बोतल उँड़ेलने लगा था। कपड़े पर गिर जाने से नशा भी न आया। और आपको कहने का....क्या कहूँ .... सच मानिए। सात दिन-ठीक सात दिन से एक बूँद भी नहीं।
ठाकुर सरदार सिंह हँसने लगे। लखनऊ में लडक़ा पढ़ता था। ठाकुर साहब भी कभी-कभी वहीं आ जाते। उनको कहानी सुनने का चसका था। खोजने पर यही शराबी मिला। वह रात को, दोपहर में, कभी-कभी सवेरे भी आता। अपनी लच्छेदार कहानी सुनाकर ठाकुर साहब का मनो-विनोद करता।
ठाकुर ने हँसते हुए कहा- तो आज पियोगे न!
झूठ कैसे कहूँ। आज तो जितना मिलेगा, सब पिऊँगा। सात दिन चने-चबेने पर बिताये हैं, किसलिए।
अद्भुत! सात दिन पेट काटकर आज अच्छा भोजन न करके तुम्हें पीने की सूझी! यह भी...
सरकार! मौज-बहार की एक घड़ी, एक लम्बे दु:खपूर्ण जीवन से अच्छी है। उसकी खुमारी में रूखे दिन काट लिये जा सकते हैं।
अच्छा, आज दिन भर तुमने क्या-क्या किया है?
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