कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
मैंने?-
अच्छा सुनिये- सवेरे कुहरा पड़ता था, मेरे धुँआ से कम्बल-सा वह भी सूर्य
के चारों ओर लिपटा था। हम दोनों मुँह छिपाये पड़े थे।
ठाकुर साहब ने हँसकर कहा-
अच्छा, तो इस मुँह छिपाने का कोई कारण?
सात
दिन से एक बूँद भी गले न उतरी थी। भला मैं कैसे मुँह दिखा सकता था! और जब
बारह बजे धूप निकली, तो फिर लाचारी थी! उठा, हाथ-मुँह धोने में जो दु:ख
हुआ, सरकार, वह क्या कहने की बात है! पास में पैसे बचे थे। चना चबाने से
दाँत भाग रहे थे। कट-कटी लग रही थी। पराठेवाले के यहाँ पहुँचा, धीरे-धीरे
खाता रहा और अपने को सेंकता भी रहा। फिर गोमती किनारे चला गया!
घूमते-घूमते अँधेरा हो गया, बूँदें पड़ने लगीं, तब कहीं भाग के आपके पास आ
गया।
अच्छा, जो उस दिन तुमने
गड़रियेवाली कहानी सुनाई थी, जिसमें
आसफुद्दौला ने उसकी लडक़ी का आँचल भुने हुए भुट्टे के दाने के बदले
मोतियों से भर दिया था! वह क्या सच है?
सच! अरे, वह गरीब लडक़ी
भूख से उसे चबाकर थू-थू करने लगी! ... रोने लगी! ऐसी निर्दयी दिल्लगी बड़े
लोग कर ही बैठते हैं। सुना है श्री रामचन्द्र ने भी हनुमान जी से ऐसा ही
...
ठाकुर साहब ठठाकर हँसने
लगे। पेट पकड़कर हँसते-हँसते लोट
गये। साँस बटोरते हुए सम्हलकर बोले- और बड़प्पन कहते किसे हैं? कंगाल तो
कंगाल! गधी लडक़ी! भला उसने कभी मोती देखे थे, चबाने लगी होगी। मैं सच
कहता हूँ, आज तक तुमने जितनी कहानियाँ सुनाई, सब में बड़ी टीस थी।
शाहजादों के दुखड़े, रंग-महल की अभागिनी बेगमों के निष्फल प्रेम, करुण कथा
और पीड़ा से भरी हुई कहानियाँ ही तुम्हें आती हैं; पर ऐसी हँसाने वाली
कहानी और सुनाओ, तो मैं अपने सामने ही बढिय़ा शराब पिला सकता हूँ।
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