कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
ठीक
इसी समय नवागत युवक ने वहाँ आकर उन्हें सचेत कर दिया। बहार ने उठकर उसका
स्वागत किया। गुल ने अपनी लाल-लाल आँखों से उसको देखा। वह उठ न सका, केवल
मद-भरी अँगड़ाई ले रहा था। बहार ने युवक से आज्ञा लेकर प्रस्थान किया।
युवक गुल के समीप आकर बैठ गया, और उसे गम्भीर दृष्टि से देखने लगा।
गुल ने अभ्यास के अनुसार
कहा- ”स्वागत, अतिथि!”
“तुम देवकुमार! आह! तुमको
कितना खोजा मैंने!”
“देवकुमार?
कौन देवकुमार? हाँ, हाँ, स्मरण होता है, पर वह विषैली पृथ्वी की बात क्यों
स्मरण दिलाते हो? तुम मर्त्यलोक के प्राणी! भूल जाओ उस निराशा और अभावों
की सृष्टि को; देखो आनन्द-निकेतन स्वर्ग का सौन्दर्य!”
“देवकुमार!
तुमको भूल गया, तुम भीमपाल के वंशधर हो? तुम यहाँ बन्दी हो! मूर्ख हो तुम;
जिसे तुमने स्वर्ग समझ रक्खा है, वह तुम्हारे आत्मविस्तार की सीमा है। मैं
केवल तुम्हारे ही लिए आया हूँ।”
“तो तुमने भूल की। मैं
यहाँ बड़े
सुख से हूँ। बहार को बुलाऊँ, कुछ खाओ-पीओ....कंगाल! स्वर्ग में भी आकर
व्यर्थ समय नष्ट करना! संगीत सुनोगे?”
युवक हताश हो गया।
गुल
ने मन में कहा- ”मैं क्या करूँ? सब मुझसे रूठ जाते हैं। कहीं सहृदयता
नहीं, मुझसे सब अपने मन की कराना चाहते हैं, जैसे मेरे मन नहीं है, हृदय
नहीं है! प्रेम-आकर्षण! यह स्वर्गीय प्रेम में भी जलन! बहार तिनककर चली
गई; मीना? यह पहले ही हट रही थी; तो फिर क्या जलन ही स्वर्ग है?”
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