कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
गुल
को उस युवक के हताश होने पर दया आ गई। यह भी स्मरण हुआ कि वह अतिथि है।
उसने कहा- ”कहिये, आपकी क्या सेवा करूँ? मीना का गान सुनियेगा? वह स्वर्ग
की रानी है!”
युवक ने कहा- ”चलो।”
द्राक्षा-मण्डप में दोनों
पहुँचे। मीना वहाँ बैठी हुई थी। गुल ने कहा-
”अतिथि को अपना गान सुनाओ।”
एक नि:श्वास लेकर वही
बुलबुल का संगीत सुनाने लगी। युवक की आँखें सजल हो
गईं, उसने कहा- ”सचमुच तुम स्वर्ग की देवी हो!”
“नहीं
अतिथि, मैं उस पृथ्वी की प्राणी हूँ-जहाँ कष्टों की पाठशाला है, जहाँ का
दु:ख इस स्वर्ग-सुख से भी मनोरम था, जिसका अब कोई समाचार नहीं मिलता”-मीना
ने कहा।
“तुम उसकी एक करुण-कथा
सुनना चाहो, तो मैं तुम्हें सुनाऊँ!”-युवक ने कहा।
“सुनाइये”- मीना ने कहा।
युवक कहने लगा-
“वाह्लीक,
गान्धार, कपिशा और उद्यान, मुसलमानों के भयानक आतंक में काँप रहे थे।
गान्धार के अन्तिम आर्य-नरपति भीमपाल के साथ ही, शाहीवंश का सौभाग्य अस्त
हो गया। फिर भी उनके बचे हुए वंशधर उद्यान के मंगली दुर्ग में, सुवास्तु
की घाटियों में, पर्वत-माला, हिम और जंगलों के आवरण में अपने दिन काट रहे
थे। वे स्वतन्त्र थे।
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