कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
शैल के एक
उँचे शिखर पर चम्पा के नाविकों को सावधान करने के लिए सुदृढ़ दीप-स्तम्भ
बनवाया गया था। आज उसी का महोत्सव है। बुधगुप्त स्तम्भ के द्वार पर खड़ा
था। शिविका से सहायता देकर चम्पा को उसने उतारा। दोनों ने भीतर पदार्पण
किया था कि बाँसुरी और ढोल बजने लगे। पंक्तियों में कुसुम-भूषण से सजी
वन-बालाएँ फूल उछालती हुई नाचने लगीं।
दीप-स्तम्भ की ऊपरी
खिडक़ी से यह देखती हुई चम्पा ने जया से पूछा- ”यह
क्या है जया? इतनी बालिकाएँ कहाँ से बटोर लाईं?”
“आज रानी का ब्याह है
न?”- कह कर जया ने हँस दिया।
बुधगुप्त विस्तृत जलनिधि
की ओर देख रहा था। उसे झकझोर कर चम्पा ने पूछा-
”क्या यह सच है?”
“यदि तुम्हारी इच्छा हो,
तो यह सच भी हो सकता है, चम्पा! “कितने वर्षों से
मैं ज्वालामुखी को अपनी छाती में दबाये हूँ।
“चुप रहो, महानाविक !
क्या मुझे निस्सहाय और कंगाल जानकर तुमने आज सब
प्रतिशोध लेना चाहा?”
“मैं तुम्हारे पिता का
घातक नहीं हूँ, चम्पा! वह एक दूसरे दस्यु के शस्त्र
से मरे।”
“यदि
मैं इसका विश्वास कर सकती। बुधगुप्त, वह दिन कितना सुन्दर होता, वह क्षण
कितना स्पृहणीय! आह! तुम इस निष्ठुरता में भी कितने महान होते।”
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