| कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
    “गौतम की गम्भीर प्रतिमा
      के चरण-तल में बैठकर उसने निश्चय किया, सब दु:ख
      है, सब क्षणिक है, सब अनित्य है।” 
    
    “सुवास्तु का पुण्य-सलिल
      उस व्यथित हृदय की मलिनता को धोने लगा। वह एक
      प्रकार से रोग-मुक्त हो रही थी।” 
    
    “एक
      सुनसान रात्रि थी, स्थविर धर्म-भिक्षु थे नहीं। सहसा कपाट पर आघात होने
      लगा। और 'खोलो! खोलो!' का शब्द सुनाई पड़ा। विहार में अकेली लज्जा ही थी।
      साहस करके बोली- 
    
    “कौन है?” 
    
    “पथिक हूँ, आश्रय
      चाहिये”- उत्तर मिला। 
    
    “तुषारावृत
      अँधेरा पथ था। हिम गिर रहा था। तारों का पता नहीं, भयानक शीत और निर्जन
      निशीथ। भला ऐसे समय में कौन पथ पर चलेगा? वातायन का परदा हटाने पर भी
      उपासिका लज्जा झाँककर न देख सकी कि कौन है। उसने अपनी कुभावनाओं से डरकर
      पूछा- ”आप लोग कौन हैं?” 
    
    “आहा, तुम उपासिका हो!
      तुम्हारे हृदय
      में तो अधिक दया होनी चाहिये। भगवान् की प्रतिमा की छाया में दो अनाथों को
      आश्रय मिलने का पुण्य दें।” 
    
    लज्जा ने अर्गला खोल दी।
      उसने
      आश्चर्य से देखा, एक पुरुष अपने बड़े लबादे में आठ-नौ बरस के बालक और
      बालिका को लिये भीतर आकर गिर पड़ा। तीनों मुमूर्ष हो रहे थे। भूख और शीत
      से तीनों विकल थे। लज्जा ने कपाट बन्द करते हुए अग्नि धधकाकर उसमें कुछ
      गन्ध-द्रव्य डाल दिया। एक बार द्वार खुलने पर जो शीतल पवन का झोंका घुस
      आया था, वह निर्बल हो चला। 
    			
		  			
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