कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बहार का साहस न
हुआ कि वह मण्डप में पैर धरे, पर गुल, वह तो जैसे मूक था! एक भूल, अपराध
और मनोवेदना के निर्जन कानन में भटक रहा था, यद्यपि उसके चरण निश्चल थे।
इतने में हलचल मच गई। चारों ओर दौड़-धूप होने लगी। मालूम हुआ, स्वर्ग पर
तातार के खान की चढ़ाई है।
बरसों घिरे रहने से
स्वर्ग की विभूति
निश्शेष हो गई थी। स्वर्गीय जीव अनाहार से तड़प रहे थे। तब भी मीना को
आहार मिलता। आज शेख सामने बैठा था। उसकी प्याली में मदिरा की कुछ अन्तिम
बूँदें थीं। जलन की तीव्र पीड़ा से व्याकुल और आहत बहार उधर तड़प रही थी।
आज बन्दी भी मुक्त कर दिये गये थे। स्वर्ग के विस्तृत प्रांगण में
बन्दियों के दम तोड़ने की कातर ध्वनि गूँज रही थी। शेख ने एक बार उन्हें
हँसकर देखा, फिर मीना की ओर देखकर उसने कहा- ”मीना! आज अंतिम दिन है! इस
प्याली में अन्तिम घूँटें है, मुझे अपने हाथ से पिला दोगी?”
“बन्दी हूँ शेख! चाहे जो
कहो।”
शेख
एक दीर्घ निश्वास लेकर उठ खड़ा हुआ। उसने अपनी तलवार सँभाली। इतने में
द्वार टूट पड़ा, तातारी घुसते हुए दिखलाई पड़े, शेख के पाप-दुर्बल हाथों
से तलवार गिर पड़ी।
द्राक्षा के रूखे कुञ्ज
में देवपाल, लज्जा और
गुल के शव के पास मीना चुपचाप बैठी थी। उसकी आँखों में न आँसू थे, न ओठों
पर क्रन्दन। वह सजीव अनुकम्पा, निष्ठुर हो रही थी।
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