कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
नन्हकू उन्मत्त था। उसके
थोड़े-से साथी उसकी आज्ञा पर
जान देने के लिए तुले थे। वह नहीं जानता था कि राजा चेतसिंह का क्या
राजनीतिक अपराध है? उसने कुछ सोचकर अपने थोड़े-से साथियों को फाटक पर
गड़बड़ मचाने के लिए भेज दिया। इधर अपनी डोंगी लेकर शिवालय की खिडक़ी के
नीचे धारा काटता हुआ पहुँचा। किसी तरह निकले हुए पत्थर में रस्सी अटकाकर,
उस चञ्चल डोंगी को उसने स्थिर किया और बन्दर की तरह उछलकर खिडक़ी के भीतर
हो रहा। उस समय वहाँ राजमाता पन्ना और राजा चेतसिंह से बाबू मनिहारसिंह कह
रहे थे- ”आपके यहाँ रहने से, हम लोग क्या करें, यह समझ में नहीं आता।
पूजा-पाठ समाप्त करके आप रामनगर चली गयी होतीं, तो यह ....”
तेजस्विनी पन्ना ने कहा-
”अब मैं रामनगर कैसे चली जाऊँ?”
मनिहारसिंह दुखी होकर
बोले- ”कैसे बताऊँ? मेरे सिपाही तो बन्दी हैं।”
इतने
में फाटक पर कोलाहल मचा। राज-परिवार अपनी मन्त्रणा में डूबा था कि
नन्हकूसिंह का आना उन्हें मालूम हुआ। सामने का द्वार बन्द था। नन्हकूसिंह
ने एक बार गंगा की धारा को देखा-उसमें एक नाव घाट पर लगने के लिए लहरों से
लड़ रही थी। वह प्रसन्न हो उठा। इसी की प्रतीक्षा में वह रुका था। उसने
जैसे सबको सचेत करते हुए कहा- ”महारानी कहाँ है?”
सबने घूम कर देखा-एक
अपरिचित वीर-मूर्ति! शस्त्रों से लदा हुआ पूरा देव!
चेतसिंह ने पूछा- ”तुम
कौन हो?”
“राज-परिवार का एक बिना
दाम का सेवक!”
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