कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
यह
बात राजा साहब को विदित हुई। उन्होंने उसकी मदद के लिए कोलों को जाने की
आज्ञा दी। रामू उस अवसर पर था। उसने सबके पहले जाने के लिए पैर बढ़ाया, और
चला। वहाँ जब पहुँचा, तो उस दृश्य को देखकर घबड़ा गया, और हीरा से कहा-
हाथ ढीला कर; जब यह छोड़ने लगे, तब गोली मारूँ, नहीं तो सम्भव है कि
तुम्हीं को लग जाय।
हीरा- नहीं, तुम गोली
मारो।
रामू- तुम छोड़ो तो मैं
वार करूँ।
हीरा- नहीं, यह अच्छा
नहीं होगा।
रामू- तुम उसे छोड़ो, मैं
अभी मारता हूँ।
हीरा- नहीं, तुम वार करो।
रामू- वार करने से सम्भव
है कि उछले और तुम्हारे हाथ छूट जायँ, तो तुमको
यह तोड़ डालेगा।
हीरा- नहीं, तुम मार लो,
मेरा हाथ ढीला हुआ जाता है।
रामू- तुम हठ करते हो,
मानते नहीं।
इतने में हीरा का हाथ कुछ
बात-चीत करते-करते ढीला पड़ा; वह चीता उछलकर
हीरा की कमर को पकड़कर तोड़ने लगा।
रामू खड़ा होकर देख रहा
है, और पैशाचिक आकृति उस घृणित पशु के मुख पर
लक्षित हो रही है और वह हँस रहा है।
|